Last Updated on January 23, 2023 by Balbodi Ramtoriya
जय गुरुदेव कलयुग में भी आदमी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। मोक्ष प्राप्त करने के उपाय महात्मा सब कुछ बतलाते हैं। Moksh Prapti कैसे होता है जन्म मरण से मुक्त कैसे होता है यह सब कुछ महात्मा अपने सत्संग के माध्यम से लोगों को बताते हैं और जीते जी परमात्मा के दर्शन दीदार करआते हैं। चलिए इसी क्रम में जानते हैं आध्यात्मिक सत्संग की महत्त्वपूर्ण कड़ी मोक्ष प्राप्ति (Moksh Prapti) के बारे में, जय गुरुदेव।
Moksh Prapti कर सकते हैं
वर्तमान में अगर एक तरफ आध्यात्मवाद की लहर बढ़ रही है तो दूसरी तरफ भौतिकवाद अपनी चरम सीमा को पार कर गया है। एक ओर सुख और शान्ति का सन्देश फैल रहा है तो दूसरी ओर अधिक से अधिक भौतिक सुखों को प्राप्त करने की होड लगी हुई है। इस होड में करम अकरम, पाप पुण्य अपना पराया सब एक किनारे ताक पर रख दिए गये है और हर कोई अन्धी दौड में लगा हुआ है।
जिसे सब मिलता जा रहा है उसकी बेचेनी भी बढ़ रही है और ज्यादा पाने की। जिसे नहीं मिल पा रहा है वह तो पाने के लिए बेचेन हे ही। एक बार स्वामी जी महाराज ने कहा था कि दुनिया तुम्हें उतनी ही मिलेगी जितना तुम्हारे प्रारब्ध में है लेकिन कलयुग में भजन करने का अधिकार सभी मानव इन्सानों को है। आप भजन करके अपनी आत्मा को जन्म मरण के चक्कर से, पाप पुण्य के बन्धन से, अलग करके अपना सच्चा घर (Moksh Prapti) पा सकते हो।
पर हमारी कमजोरी ये है कि हम परमार्थ का दिखावा करना चाहते है उसको पाना नहीं चाहते है। हम भक्त होने का दिखावा करना चाहते है पर भक्ति नहीं करना चाहते है। इसलिए हम बैचेन रहते है। दुविधा में पड़े रहते है। न खुल के भौतिकवाद की तरफ दौड पाते है न परमार्थ (Moksh Prapti) में अपने पैर जमा पाते है।
महापुरूषों ने कहा है जो आया सो जाएगा
वैसे देखा जाये तो दुनिया छोड़कर तो जाना है क्योंकि महापुरूषों ने कहा है आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकरी हमारे गुरु महाराज बाबा जयगुरूदेव जी भी कहते है कि जब मैं कहता हूँ कि मुझे भी यहाँ से जाना है, मैने कोई यहाँ रहने का पट्टा नहीं लिखवाया है। तो आपको को कैसे कह दूं कि आप यहाँ रहोगे। जाना आपको भी पड़ेगा, जाना मुझको भी है।
सब छोड़कर आप जाओगे तो मैं क्या कुछ लेकर जाउंगा। मुझे भी सब छोड़कर जाना है लेकिन बस ये है कि अपना कारज कर लिया रही न चिन्ता कोय। जब उसका बुलावा आएगा तो मैं कह दूंगा कि लो तुम्हारा दिया शरीर ये है मैं चला।
आप को भी मैं यही कहता हूँ कि जीते जी Moksh Prapti आप भी मौत के स्थान को पार कर जाओ, तो मौत का डर खतम। जब उसका बुलावा आ तो दे दो उसका तन और निकल चलो अपने घर। आपको रास्ता बताने वाला मिल गया है, आपको मददगार मिल गया है उसे अपने लिए सोचने का समय कहाँ हालांकि उसे भी सब कुछ छोड़कर जाना होगा।
एक उदाहरण भागदौड का
मुझे एक उदाहरण याद आता है कि किसी राजा ने ये एलान किया अपनी प्रजा के सामने कि सूर्योदय के समय से सूर्यारत तक जो दौड लगाकर जितनी जमीन तक जाएगा वह उसकी हो जाएगी। सबने दौड लगानी शुरू कर दी। कोई थोडी दूर जाकर रूका, कुछ और आगे जाकर थक कर रूक गए।
एक आदमी जमीन पाने की ललक में भागता गया भागता गया। जब सूर्यास्त होने लगा तो समय खत्म होने का ऐलान हुआ पर वह आदमी रूकते ही वहाँ गिर पड़ा और दम तोड़ दिया। वह नहीं जानता था कि केवल ढाई गज की जमीन ही उसे मिलेगी।
ठीक यही हाल हम सबका का है। जीवन शुरू होता है कल्पनाओं से, बहुत कुछ करने की बहुत कुछ पाने की कल्पना लेकर हम बड़े होते है फिर उसे पाने के लिए भागदौड शुरू करते है। कितना मिलता है नहीं मिलता है यह तो सबके किस्मत की बात है लेकिन इसी में देखते-देखते सारा समय निकल जाता है,
परम पिता परमात्मा को प्राप्त करो।
शरीर थकने लगता है अपनी बनाई दुनियाँ में ही आदमी धीरे-धीरे अजनवी और अनजान बनने लगता है। फिर जीवन की सारी कल्पनायें, सारी महत्त्वाकांक्षायें बेमानी बन जाती है और कूच करने का समय आ जाता है। जितने भी सन्त फकीर हुए या जो आज हैं सब लोगों का एक ही कहना है कि यह मनुष्य जीवन अनमोल है।
इसी में परमात्मा Moksh मिलता है इसे पाकर किसी महापुरूष के चरणों में बैठकर अपनी आत्मा को जगा (Moksh Prapti kar) लो और परम पिता परमात्मा को प्राप्त करो। ये संसार क्षणिक है, सराह है, थोड़े दिन के लिए रहना है, अन्त में छोड़कर जाना है। यह कटु सत्य है। कोई भी चीज साथ नहीं जाएगी। हमने जो कर्म किए है अच्छे या बुरे उसका फल हमको भोगना पड़ेगा।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए आध्यात्मिक सत्संग के माध्यम से अपने Moksh Prapti जीते जी परमात्मा प्राप्ति के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण सत्संग बातें जाने हैं, हम वास्तव में महापुरुषों की दया ले कर के हम इसी शरीर से परमात्मा का दर्शन दीदार कर सकते हैं। महापुरुष सत्संग में सब कुछ बतलाते हैं। आशा है आपको ऊपर दिया गया सत्संग जरूर अच्छा लगा होगा। जय गुरुदेव मालिक की दया सब पर बनी रहे।
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