जिसने खुद को नहीं जाना वह खुदा को क्या जान पायेगा? Khud Ko Janna

बाबा जयगुरुदेव का सन्देश यह आध्यात्मिक विद्यालय है इसमें आप को सबकुछ समझाया जाता है, कराया जाता है, मालिक का भेद बताया जाता है। उसकी साधना करोगे तब तुम खुद अनुभव करने लगोगे कि तुम कौन हो, कहाँ से आए हो और मरने के बाद जीवात्मायें कहाँ जाती हैं। पहले खुद को जानना (Khud Ko Janna) होता है फिर खुदा को जान सकते हैं। जिसने खुद को नहीं जाना वह खुदा को क्या जान पायेगा?

खुद को जान (Khud Ko Jann) लो तो खुदा को पहचान लोगे।

परमात्मा है वह मिलता है और इसी मनुष्य शरीर में मृत्यु के पूर्व वह जीते जी प्राप्त होता है और उसके दर्शन होते हैं। मृत्यु के बाद न वह कभी मिला और न ही मिलेगा। जो लोग मर कर चले जाते हैं उनको आप कहते हैं कि स्वर्गवासी हो गए। यह तो खैर कहने का ढंग है।

वैसे आप को क्या मालूम कि वह स्वर्गवासी हुए या नर्कवासी हुए या कहीं और के वासी हुए। उनका कोई संदेश तो आप के पास आता नहीं। आप भी मृत्यु के बाद कहाँ जाएंगे यह भी आप को नहीं मालूम। आप इस दुनियाँ में कहाँ से आए हैं आप को यह भी ज्ञात नहीं।

आप यह भी नहीं जानते हैं कि आप को यह मनुष्य शरीर क्यों मिला और कैसे मिला है। आप इस बात से भी परिचित नहीं हैं कि आप हैं कौन? आप हाथ-पैर हैं, नाक हैं, कान हैं, आँख हैं-आप आखिर हैं क्या? वह कौन-सी चीज है जिसके रहते शरीर चेतन है और जिसके निकलते ही शरीर मुर्दा होकर जमीन पर गिर जाता है।

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गम्भीरता पूर्वक विचार करना खुद को जान (Khud Ko Jann) लो

वह चीज इस शरीर में कहाँ हैं? उसके रहने का असली स्थान कहाँ पर है? इन प्रश्नों पर आप को गम्भीरता पूर्वक विचार करना होगा। किन्तु इनका उत्तर आप के पास नहीं है। इनका उत्तर तो वही दे सकता है जिसने स्वयं इन रहस्यों को देख और समझ लिया है।

यह मनुष्य शरीर बहुत ही अनमोल है। अनेक जन्मों के पुण्य कर्मों का जब शुभ-संचय होता है तब कहीं परमात्मा की कृपा से यह नर शरीर मिलता है। इसे देव दुर्लभ कहा गया है अर्थात् देवता भी इसे पाने के लिए तरसते हैं।

केवल इसी पाँच तत्वों के मानव—तन द्वारा सुरत-शब्द योग की साधना करके भगवान की प्राप्ति होती है। जिन्होंने भी परमात्मा को पाया इसी शरीर द्वारा जीते जी पाया और किताबों में लिख दिया। वे किताबें गवाह हैं और प्रमाण हैं।

महात्माओं ने बताया उसका पालन करो

हमको न कोई नई जाति बनानी है न पुरानी तोड़नी है। आप सब लोग अपने-अपने समाजों में रहें, अपने-अपने रस्म-रिवाज और व्यवहारों को रखें। उनमें जो बुराइयाँ आ गई हैं उनको दूर करें। गंगा जल है किसी से नहीं कहता कि तुम कौन हो उसमें हिन्दू, मुसलमान, छोटा-बड़ा चाहे जो स्नान कर ले।

उसने किसी को मना नहीं किया। अपनी-अपनी जातियों में रहो और जो महात्माओं ने बताया उसका पालन करो। जब सब लोग अपने-अपने काम में लग जाएँगे तो सब-कुछ ठीक हो जाएगा। राजा जाति की बात करेगा तो न्याय नहीं कर सकता और साधू जाति की बात करता है तो आत्म कल्याण नहीं कर सकता।

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दिन में काम करो खेती का, दुकान का, दफ्तर का। शाम को बच्चों की सेवा करो फिर थोड़ा समय भगवान के भजन के लिए निकालो। तुमने गर्भ में वादा किया है कि बाहर निकलने पर भजन करेंगे किन्तु तुम उस वादे को भूल गए।

सेवा करो और किसी का दिल न दुखाओ

अच्छे काम करो, सेवा करो और किसी का दिल न दुखाओ। जिस काम को करने में डर लगे वह पाप है और जिस काम को करने में खुशी हो, प्रसन्नता हो वह पुण्य है। पाप और पुण्य की यह सीधी और सरल परिभाषा है।

पराये अवगुणों को नहीं देखना। उससे अपने में गन्दगी बढ़ेगी। यह ठीक है कि उसको प्यार से समझा दो कि यह अवगुण है इससे बचो। मान ले तो ठीक नहीं चुप हो जाओ पर आलोचना मत करो। आलोचना करोगे तो बोझा लदेगा। तुम अपने गुणों को बढ़ाओ। किसी में कोई गुण दिखे तो उसे ले लो और अवगुणों को छोड़ दो।

जन-जन में होगी क्रान्ति, हम तुम्हें दिखा देंगे।
रूढ़ि, धर्म विवादों को, हम मिटा के दिखा देंगे।

खुद को जान (Khud Ko Jann) लो सत्संग में सबकुछ समझाया जाता है, मालिक का भेद बताया जाता है। सेवा करो और किसी का दिल न दुखाओ. Jai Guru Dev.

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