Paap aur Punya की परिभाषा। परमात्मा कैसे मिलता? पाप और पुण्य क्या

महानुभाव Paap aur Punya क्या है पाप और पुण्य की परिभाषा महात्मा क्या बतलाते हैं? जीते जी इस शरीर से परमात्मा कैसे मिलता है? Parmatma को पाने का सरल उपाय क्या है? क्या इस मनुष्य शरीर से परमात्मा जीते जी मिलता है और Paap aur Punya की क्या परिभाषा होती है महापुरुषों ने सरल शब्दों में बखान किया है। चलिए जानते हैं आध्यात्मिक (Aadhyatmik) विद्यालय में क्या पढ़ाया जाता है? चलिए शुरू करें जय गुरुदेव।

Paap aur Punya
Paap aur Punya

खुद को जान लो (Swayam ko Jano)

यह आध्यात्मिक (Aadhyatmik) विद्यालय है इसमें आपको सब कुछ समझाया जाता है कराया जाता है, मालिक का भेद बताया जाता है। उसकी साधना करोगे तव तुम खुद अनुभव करने लगोगे कि तम कौन हो? कहाँ से आए हो? और मरने के बाद जीवात्मा (Jivatma) कहाँ जाती है?

पहले खुद को जानना होता है फिर खुदा (God) (Bhagvaan) को जान सकते हो। जिसने खुद को नहीं जाना वह खुदा (Bagvaan) को क्या जान पायेगा? खुद (Self) को जान लो तो खुदा (Parmatma) को पहचान लोगे।

परमात्मा मिलता है (Parmatma Milta Hai)

Parmatma (परमात्मा) है वह मिलता है और इसी मनुष्य शरीर में मृत्यु के पूर्व जीते जी प्राप्त होता है और उसके दर्शन होते हैं। मृत्यु के बाद न वह कभी मिला और न ही मिलेगा। जो लोग मर कर चले जाते हैं उनको आप कहते है कि स्वर्गवासी (Swargwasi) हो गये यह तो खेर कहने का ढंग है।

वैसे आपको क्या मालूम कि वह स्वर्गवासी (Swargwasi) हुए या नकवासी (Narak Vasi) हुए या कहीं और के वासी हुए। उनका कोई सन्देश तो आपके पास आता नहीं और के वासी हुए। उनका कोई सन्देश तो आपके पास आता नहीं, मृत्यु के बाद कहाँ गए। आप इस दुनियाँ में कहाँ से आए हैं? आपको यह भी ज्ञात नहीं।

मनुष्य शरीर क्यों मिला (Manushya Sharir)

आप यह भी नहीं जानते है कि आपको यह मनुष्य शरीर (Manushya Sharir) क्यों मिला और कैसे मिला है। आप इस बात से भी परिचित नहीं है कि आप हैं कौन? आप हाथ-पैर है, नाक है, आँख हैं आए आखिर है क्या? वह कौन-सी चीज है जिसके रहते शरीर चेतन (Sharir Chetan) है और जिसके निकलते ही शरीर मुर्दा होकर जमीन पर गिर जाता है।

यह चीज इस शरीर में कहाँ है? उसके रहने का असली स्थान (Asali Sthan) कहाँ पर है? इन प्रश्नों पर आप को गम्भीरता पूर्वक विचार करना होगा। किन्तु इनका उत्तर आपके पास नहीं है इनका उत्तर तो वहीं दे सकता है जिसने स्वयं इन रहस्यों को देख और समझ लिया है।

जीते जी पाया परमात्मा को (Jinda Rahte Parmatma)

यह मनुष्य शरीर (Manushya Sharir) बहुत ही अनमोल है। अनेक जन्मों के पुण्य (Punya) कर्मो का जब शुभ संचय होता है तब कहीं परमात्मा (Parmatma) की कृपा से यह नर शरीर मिलता है। इसे देव दुलभ कहा गया है अर्थात देवता (Devta) भी इस पाने के लिए तरसते है।

केवल इसी पाँच तत्वों (Panch tatva) के मानव तन द्वारा सुरत शब्द योग की साधना करके भगवान (God) की प्राप्ति होती है। जिशाने भी परमात्मा (Parmatma) को पाया इमी शरीर द्वारा जीते जी पाया और किताबों में लिख दिया। वे किताबें गवाह हैं और प्रमाण हैं।

अपने-अपने रस्म-रिवाज (Rasme Riwaj)

हमको न कोई नई जाति बनानी है न पुरानी तोड़नी है। आप सब लोग अपने-अपने समाजों में रहें, अपने-अपने रस्म-रिवाज (Rasme Riwaj) और व्यवहारों को रखें। उनमें जो बुराइयाँ आ गईं हैं उनको दूर करें। गंगा जल है किसी से नहीं कहता कि तुम कौन हो उसमें हिन्दू, मुसलमान, छोटा बड़ा चाहे जो स्नान कर ले।

उसने किसी को मना नहीं किया। अपनी-अपनी जातियों में रहो और जो महात्माओं (Mahatmayo) ने बताया उसका पालन करो। जब सब लोग अपने-अपने काम में लग जायेंगे तो सब कुछ ठीक हो जायेगा। राजा जाति की बात करेगा तो न्याय नहीं कर सकता और साधु जाति की बात करता है तो आत्मा का कल्याण (Atma Kalyan) नहीं कर सकता।

पाप और पुण्य की परिभाषा (Paap aur Punya Ki Paribhasha)

दिन में काम करो खेती का दुकान का, दफ्तर का। शाम को बच्चों की सेवा करो फिर थोड़ा समय भगवान के भजन (Bhagwan ka bhajan) के लिए निकालो। तुमने गर्भ में वादा किया है कि बाहर निकलने पर भजन (bhajan) करेंगे किन्तु तुम उस वादे को भूल गये।

अच्छे काम करो सेवा करो और किसी का दिल न दुखाओ। जिस काम को करने में डर लगे वह पाप (Paap) है और जिस काम को करने में खुशी हो प्रसन्नता हो वह पुण्य (Punya) है। पाप और पुण्य (Paap aur Punya) की यह सीधी और सरल परिभाषा है।

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आलोचना मत करो (Aalochana Mat Karo)

पराये अवगुणों को नहीं देखना। उससे अपने में गन्दगी बढ़ेगी। यह ठीक है कि उसको प्यार से समझा दो कि यह अवगुण (Avgun) हैं इससे बचो। मान ले तो ठीक नहीं तो चुप हो जाओ पर आलोचना मत करो। आलोचना (Aalochana) करोगे तो बोझा लदेगा। तुम अपने गुणों को बढ़ाओ। किसी में कोई गुण दिखे तो उसे लो और अवगुणों को छोड़ दो।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने पाप और पुण्य (Paap aur Punya) के बारे में जाना महात्माओं की आध्यात्मिक विद्यालय में सब कुछ समझा जाता है परमात्मा (Parmatma) को इसी शरीर से कैसे प्राप्त किया जाता है? यह सब कुछ आपने पढ़ा है। आशा है आपको यह सत्संग आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा।जय गुरुदेव

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