सच्चे गुरु (Sachche Guru) की पहचान क्या है? महात्माओं ने कहाँ ऐसे व्यक्तियों का साथ नहीं करना

महानुभाव JaiGuruDev, जैसे कि ऊपर टॉपिक में आप देख रहे हैं कि सच्चे गुरु की पहचान (Sachche Guru Ki Pahchan) महात्मा ने कहाँ है कि कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका साथ नहीं करना चाहिए, महात्माओं ने सच्चे गुरु की पहचान भी बताई है आप इस सत्संग आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे जो स्वामी जी महाराज ने सच्चे गुरु की पहचान बताई है तो चलिए शुरू करते हैं “जय गुरुदेव”

सच्चे गुरु की पहचान

सच्चे गुरु की पहिचान (Sachche Guru Ki Pahchan)

Sachche Guru (सच्चे गुरु) की पहिचान यह है कि घट में परम प्रभु और रचना का भेद बतावे, शब्द सुना कर अन्तर में सुरत अर्थात आत्मा और मन को सिमटावे और चढ़ावे, नेत्र के स्थान से जहाँ जाग्रत अवस्था में जीव की मुख्य कर बैठक है चलने की युक्ति समझावे और आप परम प्रभु के स्थान से चैतन्य हों अथवा अपना कार्य यहीं अभ्यास करके पूरा कर चुके हों अथवा साधन कर रहे हो।

पहले का नाम संत सतगुरू दूसरे का साध गुरु या प्रेमी अभ्यासी है। उसके उपदेश और सतसंग में जीव का कार्य बन सकता है। किसी दूसरे व्यक्ति से सच्चा उद्धार सम्भव नहीं न चौरासी का भ्रमण छूटेगा।

सच्ची युक्ति बतलाने वाला (Sachchi Yukti Batane Bala)

जीवों को स्वयं विचारना चाहिए कि सच्चे प्रभु से मिलने की सच्ची युक्ति बतलाने वाला (Sachchi Yukti Batane Bala) मार्ग चलाने वाला ही गुरु हो सकता है अथवा असत्य भ्रमों में तथा बाहर मुखी कर्मो में भटकाने वाला और यथार्थ से बिमुख रहने वाला। वह तो स्वयं अचैतन्य है भ्रमों में भ्रमण कर रहा है।

धन और पूजा के लोभ में और भी भ्रमाता है। ऐसे झूठे गुरु से जिसने पाखण्ड करके अथवा अज्ञानता से अपना नाम गुरु रक्खा है गुरूत्व का सम्बन्ध तोड़ना उचित है। इससे कभी पाप नहीं होगा अपितु परम प्रभु उन जीवों से जिन्होंने सच्चा उपदेश लेकर अभ्यास आरम्भ किया है और सच्चे गुरु (Sachche Guru) और सच्चे प्रभु की शरण में आये हैं, प्रसन्न होगा।

किसी दूसरे का विचार (Kisi Dusre Ke Vichaar)

एकान्त में अधिक लाभ है यदि प्रभु के अतिरिक्त किसी दूसरे का विचार मन में न आवे। यदि बाहर से एकान्त हुआ किन्तु मन में संसारी विचार भरे रहे तो ऐसा व्यक्ति मन और काल के साथ रहता है?

ऐसे व्यक्तियों का साथ नहीं करना (Sath Nahi Karna)

महात्माओं ने कहा है पांच व्यक्तियों का साथ नहीं करना।

1-जो झूठ बोलता है।
2-मूर्ख जो कि हित के समय तुम्हारी हानि करा दे।
3-कंजूस जो कि उचित समय पर शुभ कर्म में तुम्हें व्यय न करने दे।
4-मलीन हृदय अर्थात ओछा और कमीना पुरूष जो कि आवश्यकता के अवसर पर तुम्हारे काम न आवे।
5-विश्वासघाती जो कि अपना लाभ देखकर तुम्हारी हानि करा दे।

जो कोई दूसरों को बचन सुनाने की अभिलाषा अधिक रखे और अन्तर अभ्यास कम करता हो तो उसके विचार नीच हैं, उसका मन मूर्ख है और वह अपना समय व्यर्थ ही खोता है।

झूठे गुरु की टेक को तजत न कीजे बार।
द्वार न पावे शब्द का, भटके बारम्बार॥
सूरत शब्द बिना जो गुरु होई।
ताको छोड़ो पाप कटा॥

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दी गई सत्संग आर्टिकल में आपने महापुरुषों के द्वारा बताए हुए सच्चे गुरु (Sachche Guru) की पहचान और साथ में कुछ ऐसे लोगों का साथ नहीं करना चाहिए जिनके बारे में संदेश दिया। आशा है आपको ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा और अधिक सत्संग पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।और अधिक पढ़ें “जय गुरुदेव” Malik सब पर कृपा करें!

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