दुःख का मूल कारण क्या है? Sukh Karta Dukh Harta सबका मालिक एक

सुख कर्ता दुख हर्ता (Sukh Karta Dukh Harta) सबका मालिक एक, जी हाँ यह बात बिल्कुल ही सच्ची है वह परमपिता परमात्मा सुखकर्ता होता है और वही दुखहर्ता होता है। यदि हमने कुछ यत्न कर लिए तो हमारी जिंदगी में आने वाले दुख का मूल कारण समझकर हम दुखों से निजात पा सकते हैं और जीवन का असली सुख खोज सकते हैं। यह असली सुख देखा जाए तो इस संसार में नहीं मिलने वाला है। अपना असली सुख, राज, सब कुछ छोड़कर इस मृत्युलोक में आए, असली सुख की जानकारी वही परमपिता परमात्मा स्वरुप गुरु सुख कर्ता दुख हर्ता (Sukh Karta Dukh Harta) हमारे लिए अपना असली सुख बताएगा और उस बताए हुए रास्ते पर हम चले तो परमात्मा की असीम कृपा से, गुरु की महान कृपा से हम अपने असली सुख, असली घर पहुँच सकते हैं।जय गुरुदेव

Sukh Karta Dukh Harta
Sukh Karta Dukh Harta

दुःख का मूल कारण क्या है?

मनुष्यों ने इच्छाओं के विस्तार में आकर दुःखी जीवन बना रखा है। जितनी इच्छा बढ़ती जायेगी उतने सामान की जरूरत होगी, पैसा नहीं रहने पर अपनी मेहनत के अतिरिक्त पैसा पैदा करने की चेष्टा में रहना ओर अन्त में जब वह उन वस्तुओं को न पा सका तो चोरी रिश्वत तथा व्याज व्यवसाय में कपट करेगा, अनेक रास्तों में वह ठगेगा और उसकी पूर्ति करने का प्रयास मान इज्जत के साथ परिवार को दिखलायेगा कि मैं बहुत शक्तिशाली हूँ। परन्तु नाजुक परिस्थितियाँ अपनी उसे मालूम है। उसके लिये वह खुद चिन्ता में रहता है। दुःख को दूर करने का प्रयास करो।

मन की तरंगों का विस्तार अलौकिक है जो कि खुद वही समझ पाता है। मन बहुत दुष्ट पापी कपटी झूठा है जो कि जीवात्मा का महान शत्रु है। इसका छल कपट गुरु के पास से जायेगा और कोई उपाय नहीं है।

मनुष्य सब अन्तर के मार्ग (Aasli Sukh) भूल चुके हैं कारण यह है कि हर मनुष्य काम धन्धों में फंसकर लोलुप हो चुका। स्वार्थ भाव में उतना व्यग हो गया जैसे काम की मस्ती में कुत्ता सब कुछ भूलकर पागलों की भांति दौड़ लगाता है। उपरान्त जिन्होंने कथाओं के द्वारा मुक्ति के हेतु जो कुछ सुनाया उसका असर अच्छा न पड़ के खराब पड़ा और जीव मुक्ति के फल को सुनकर निश्चिन्त हो गये पाप धुल गये अब वे नये पाप फिर करते हैं। फिर कथा पूजा पाट मन्दिर में जाना और तीर्थ देशाटन करेंगे परन्तु एक भी पाप न धुलेगा। इनकी आत्मा गन्दी होती जाएगी।

असली सुख की खोज

यदि हम इस मनुष्य शरीर में आए हैं तो हमारे पास सोचने विचारने की क्षमता है अच्छा बुरा जानते हैं, हानि लाभ जानते हैं, सुख-दुख जानते हैं, उसके साथ यह भी जानते हैं कि सुख कहाँ से प्राप्त होगा? और दुख कहाँ से प्राप्त हो रहा? दुख तो इस संसार में है ही। यदि वास्तविक सुख चाहिए तो हमें इस संसार से हटकर कुछ करना होगा ।

क्योंकि यह सब उस परमेश्वर के हाथ में होता है वह हमारे लिए ऐसे सुझाव देता है हम काम करते हैं प्रगति की ओर बढ़ते हैं और एक अच्छे रास्ते पर सुख पाने की लालसा में चलते हैं। यह सब हो पाता है सुखकर्ता दुखहर्ता (Sukh Karta Dukh Harta) उस परमपिता परमात्मा की असीम कृपा से, महानुभाव ऊपर दिया गया कंटेंट आपको जरूर अच्छा लगा होगा और अधिक पढ़ें जय गुरुदेव।

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