महात्माओं के बचन सबसे बड़ी सीख, संतो के अनमोल विचार

जय गुरुदेव, महात्माओं के बचन महानुभाव संत महात्मा छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से बहुत बड़ा उपदेश देते हैं। महात्माओं के वचन कभी मिथ्या नहीं जाते हैं वह अपने वचनों के द्वारा बहुत बड़ी सीख देते हैं, जो मानव जीवन के लिए कल्याणकारी होता है। संत महात्मा बड़े दयालु होते हैं वह हर प्रकार की जीव पर दया करते हैं और सही रास्ते पर लाने की पूरी कोशिश करते हैं चलिए जानते हैं महात्माओं के अनमोल विचार:

महात्माओं की छोटी कहानी बड़ी सीख

महात्माओं के बचनशैतान हजरत मूसा की सेवा में उपस्थित हुआ और कहने लगा कि मैं आप को तीन बाते सिखाता हूँ जिससे कि प्रभु से आप मेरे पक्ष में आशीर्वाद मांगे। उन्होंने पूछा कि वे तीन बातें क्या हैं?

शैतान ने कहा वे ये हैं, पहला क्रोध और शीध्र रूष्ट होने के स्वभाव का और हल्का होता है अर्थात शीघ्र भड़क उठता है, उससे मैं ऐसा खेलता हूँ जैसे बालक गेंद से जिधर चाहा फेंक दिया।

दूसरे स्त्रियों से बचे रहिये क्योंकि संसार में मैने जितने जाल फन्दे बिछाये उन सबसे अधिक भारी ओर दृढ़ बन्धन स्त्रियों का हैं और मुझे इस बन्धन का पूर्ण विश्वास हैं।

तीसरे कृपणता से बचिए क्योकि जो कृपण होता है उसका भी संसार और परमार्थ दोनों मटियामेट कर देता हूँ।

महात्माओं के बचन

महात्माओं के बचनअपना अनमोल जवाहरात

प्रभु के प्रेमियों का हृदय प्रभु के भेद और प्रेम का एक सन्दूकचा है। वह अपना अनमोल जवाहरात ऐसे सन्दूकचे में नहीं रखता जिसमें संसारी वस्तुएँ रक्खी हुई हैं। सच्चे प्रभु की प्रीति उसी हृदय में उत्पन्न होगी और वही उसके भेद को जानेगा जो संसारी इच्छाओं से रिक्त है।

जो नेत्र कि अपने प्रभु के प्रकाश को देखने में व्यस्त न हो उनका अन्धा होना अच्छा है। जो जिहवा कि उसके गुणानुवाद गाने में मगन न हो गूंगी अच्छी है।

जो कर्ण है कि सतगुरू का वचन और प्रभु का आंतरिक शब्द श्रवण न करता हो, वधिर अच्छा है। जो तन कि उसकी सेवा में लगा न हो वह व्यर्थ हैं।

किसी ने एक साधू से पूछा

मुझे ऐसी बात बतलाइये कि जिससे प्रभु मुझे मित्र रखे और प्यार करे। उन्होनें कहा कि संसार और मन के संसारी अंगो को शत्रु जान अर्थात परमार्थ में विध्नकारक जान प्रभु तुम्हें मित्र रखेगा और तुझ पर दया करेगा।

प्रश्न-परम पद के उपदेश का सच्चा और पूरा अधिकारी कौन है?

उत्तर-परम पद के उपदेश का सच्चा अधिकारी वह है जिसमें यह तीन बाते पाई जावे

(1) निर्लोभी होना जिसके समीप सोना, चाँदी और मिट्टी बराबर हों

(2) संसारियों के वचन का सम्मान उसके मन से बिल्कुल जाता रहा हो अर्थात निन्दा और स्तुति दोनों उसके समीप समान हो न स्तुति में प्रसन्नता हो न निन्दा में दुःख

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(3) मन की तरंगो और विचारों से दूर रहने में ऐसा प्रसन्न रहता हो जैसे कि संसारी उनमें लिप्त रहने में आनन्दित रहते हैं।

कष्ट हानि और विपत्ति के समय परीक्षा

सतगुरू अपने सेवक की कष्ट हानि और विपत्ति के समय इस प्रकार परीक्षा लेते हैं जैसे सुनार सोने की आग से, कोई शुद्ध सोना निकलता है कोई दूषित यानी मिला हुआ।

परमार्थी को तीन बातों का विचार रखना चाहिए

1-एक यह कि यदि किसी को लाभ न पहुँचा सके तो हानि भी न पहुँचावे।

2-दूसरे यह कि यदि किसी को प्रसन्न न कर सके तो अप्रसन्न अथवा दुःखी न करे।

3-तीसरे यदि किसी की प्रशंसा न करना चाहे तो उनकी कोई बुराई भी न करे।

इन पांच बातों को अवश्य याद रखना चाहिए।

(1) किसी की पीठ पीछे बुराई न करना।
(2) किसी के भेद या गुप्त बात को प्रगट न करना।
(3) झूठ वचन न कहना
(4) सतगुरू की आज्ञा में चलना
(5) अन्दर या बाहर में चोरी न करना।

जो अति करके भोजन करता है उसमें ये पांच अवगुण होते हैं।

(1) भजन में उसको रस नहीं मिलता
(2) उसके स्वास्थ्य में कमी हो जाती है
(3) वह दयावान कम होता है
(4) स्वामी की सेवा और भजन उसको भारी पड़ते हैं और
(5) उसका मन बलवान हो जाता है।

महात्माओं के बचन संसार में चैतन्य रहो और बचते रहो

महान अभाग्य क्या है? मन का मुर्दा होना। मन का मुर्दा होना क्या है? स्वामी को भूलना और संसार को चाहना।

लोग कहते हैं कि हम प्रभु की पूजा करते हैं। यथार्थ में वे अपने मन के पुजारी हैं, किन्तु कहते हैं कि प्रभु में हैं हमारा सहायक हैं। वे इससे उससे सहायता चाहते हैं, किसी के कृतज्ञ होते हैं और किसी को दोष लगाते हैं।

संसार में चैतन्य रहो और बचते रहो क्योंकि इसने विद्वानों, बुद्धिमानों और धनवानों को अपना चाकर बना रखा है।

सच्चे और कपटी भक्त की क्या पहचान है?

सच्चा भक्त भीतर और बाहर एक रूप व्यवहार रखता है। उसके किसी काम में दिखावा अथवा बनावट नहीं होता। कपटी दिखावे और बनावट के अधिक कार्य करता है। उसके हृदय में प्रभु के प्रति प्रीति कम होती है और धन का प्यार अधिक होता हैं। इस कारण उसका मन दो रूखा होता हैं, जैसे कि रुपया दोनों और एक समान नहीं होता।

जो कार्य कि प्रभु के निमित्त किया जाता है उसमें बन्धन नहीं होता। जो कर्म प्रभु के निमित्त न होगा उसमें बन्धन अवश्य होगा। अतएव फल की आशा छोड़कर सब कार्य प्रभु के चरणों में अर्पण करके अर्थात उनकी इच्छा पर छोड़कर करना चाहिए जिससे कि मन फंसने न पावे क्योंकि मन के बन्धन से दुःख सुख पैदा होते हैं।

प्रभु से मिलने की लालसा

जो अत्यधिक भोजन करता है अथवा अति न्यून भोजन करता है, जो बहुत अधिक अथवा बहुत कम सोता है, वह परमार्थ की कमाई ठीक ढंग से अर्जित नहीं कर सकता।

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जो व्यक्ति स्वयं को उत्तम जानता है वह नीच है जो व्यक्ति अपने को बहुत नीच जानेगा, उसकी सब प्रशंसा करेंगे।

यदि हृदय में प्रभु से मिलने की लालसा उत्पन्न करो तो उस प्रभु का भय भी रक्खो। सबसे बढ़कर काम तो मन के विरूद्ध करने में है।

निष्कर्ष

महानुभाव अपने ऊपर सत्संग आर्टिकल के माध्यम से महात्माओं के बचन उन अनमोल महात्माओं के विचारों को पढ़ा जो हमें छोटा-सा इशारा करते हैं और हमारे जीवन में बहुत बड़ी सीख प्रदान करते हैं।ऐसी महात्माओं को हम सब बारंबार प्रणाम करते हैं। जय गुरुदेव मालिक सब पर दया करें।

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