गुरु ज्ञान की महिमा बड़ी निराली । Guru Mahima In Hindi

गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु की महिमा का कोई भी पूर्ण रूप से लेखन नहीं कर सकता है। गुरु की शिष्य पर बहुत ही महान कृपा होती है। आफत विपत्ति परेशानियों जैसी स्थिति से निकालकर के सकारात्मक रास्ते पर खड़ा कर देता है। जय गुरुदेव आप इस आर्टिकल में गुरु की महिमा के बारे में जानेंगे। परम पूज्य गुरु महाराज जी द्वारा दिए गए संदेशों का हम वाक्य अनुसरण करें जय गुरुदेव, चलिए शुरू करें,

Guru Mahima In Hindi
Guru Mahima In Hindi

गुरु की महिमा (Guru Mahima)

Guru (गुरु) में एक चैतन्य शक्ति अग्नि के समान होती है। गुरु की आंखों से चैतन्यता धारे निकलती रहती हैं। जो की तलवार भी मुकाबला नहीं कर सकती है। उन्हीं आंखों के तेज प्रकाश से सेवक के ऊपर अपनी निगाहें डालकर उसकी सुरत को साफ़ करते हैं।

गुरु की दया के दो स्थान हैं एक तो उनकी आंखें, दूसरा उनके चरण, चरणों को स्पर्श से अभिमान का त्याग होता है और सेवक के अंदर यह भाव पैदा होता है कि गुरु की आंखों के सामने ठहर कर उनकी दया ले सकें। गुरु के पास पहुँच कर भी कुछ कानून उन की दया से होते हैं, जिनके द्वारा दया प्राप्त की जाती हैं।

यदि सेवक ने गुरु के नियमों का पालन भली-भांति कर लिया तो यह सत्य है कि दया सेवक अवश्य प्राप्त कर लेगा। सेवक को गुरु के पास पहुँचकर सदा चुस्त चालाक रहना चाहिए, सेवक ज़रा भी गुरु के पास रहकर ग़ाफ़िली करता है तो यह सच है कि गुरु की दया से खाली रहेगा।

सत्संगी जनों को आदेश (Guru Aadesh)

सत्संगी जनों को आदेश है कि जहाँ तक बने वचनों का पालन करें। सत्संगी की हालते कभी-कभी नाज़ुक गुजरने लगती हैं। ऐसी नाज़ुक परिस्थिति में सेवक घबरा जाता है और परमारथ में कमी शुरू हो जाती है।

यह ज़रूर है कर्म अनुसार गुरु कुछ हालातों को पैदा इसलिए कर रहा है कि उनको कर्म कट जाएँ। पर सत्संगी जनों को यह सुनाया जाता है कि तुमने इतने दिन जो सत्संग सुना है। उसका तुम्हें क्या असर हुआ और तुम्हारे परमार्थ के रास्ते में क्या करनी की।

कभी-कभी सत्संगीजनों की परीक्षा संसारियों के द्वारा कराई जाती है और उन्हीं के द्वारा कर्म काटने का प्रबंध किया जाता है। सत्संगी जनों को जो परमार्थ में हाथ धोकर लगे हैं उन्हें सत्संग के पूर्व के कथनों पर ध्यान देना होगा और साथ ही जिस अवस्था में अब हैं उसको भी विचार करना होगा।सत्संगी जनों को तभी समझ में आ सकता है जबकि अपने कर्मों पर विचार किया जाएगा।

गुरु की महानता (Guru Ki Mahanta)

Guru (गुरु) की महानता सदा से रही है और रहेगी। गुरु ने सत्संगी जनों को नेक पाक और पवित्र बनाया और जो उनकी शरण में आवेगी उन्हें भी बनाता रहेगा। गुरु कभी नहीं चाहता कि सत्संगी जनों को कोई कष्ट हो, गुरु जैसा पवित्र है उसी तरह पवित्र सत्संगी जनों को करना चाहता है।

Guru (गुरु) से उपदेश लेकर सत्संगी जनों को नाम कमाई में लगे रहना चाहिए, जहाँ तक हो सके और जब तक मौका मिले तब तक साधन करते रहना चाहिए, साधक अपने अंदर एकता का भाव उसी वक़्त प्रकट कर सकता है। जबकि गुरु की आज्ञा का पालन करें।

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि गुरु के पास गए उपदेश लिया और कुछ साधन ना किया। फिर दूसरे के पास पहुँच गए. साधक नहीं समझ पाता है कि करनी का फल हमारे इरादे के अनुसार मिलेगा।

यदि हमारा इरादा सच्चा है और दृढ़ है, गुरु सच्चा मिल गया तो चिंता की बात नहीं है। जल्दी नहीं करना चाहिए और दूसरे के दरवाजे पर जाना और भीख मांगना उचित ना होगा। शाही दर पर पहुँचकर इरादे के अनुसार भीख मिल जाती है।

प्रेमी जनों को आदेश (Guru ka Aadesh)

जो रास्ता गुरु ने साधक को बताया उसकी कमाई अर्थात साधन करना अति ज़रूरी है। साधन के द्वारा दया का फल प्रगट होता है। सत्संगयों यह दुनिया है इसे अपने कर्म अनुसार इसी भोग योनि में रहना है। उन्हें नीच योनियों में जाने का कर्म करते हैं।

अभी कहने से मान नहीं रहे हैं आगे उन्हें पछताना होगा। साधन करने वाले प्रेमी जनों को आदेश दिया जाता है कि सदा सुरत के जागने वाले साधन में लगे रहे और दुनिया की कार्यवाही कम कर दें ताकि जाना फसाओ ना हो पावे।

अपना अमूल्य वक़्त साधन में लगाकर शब्द मार्ग के साधन में लगे रहे जीवन के अंत समय तक तुम अपना सच्चा मित्र शब्द को पकड़ लो। जीव अपनी सफलता से अपने आपको भूल चुका है जब तक इसे गुरु सहारा ना देगा तब तक जागना नहीं हो सकता है।

कर्म रहस्य अति सूक्ष्म (Karm Rhssy)

अपने कर्म पर विश्वास नहीं करना चाहिए, कारण भी हो सकता है कि हम कर्म अपनी भूल से बुरे करते हो और हमारी सुरत बजाय पवित्र होने से गंदी होती चली जाती है। गुरु हिदायत से प्रेमी को कर्म करना चाहिए, गुरु समझता है कि किस भाव में जीव कर्म करेगा तो इसको यही फसाना यही कर्म का बंधन नहीं रहेगा।

कर्म रहस्य अति सूक्ष्म और बहुत अधिक बारीक है। इसे समझना असम्भव है। हाँ महापुरुष यदि कृपा रही तो समझ सकता है। कर्मों के बस में होकर जो अनादि काल से नट की तरह नाच रहा है। जय गुरुदेव,

पोस्ट निष्कर्ष

महानुभाव अपने ऊपर दिए गए परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सत्संग के महत्त्वपूर्ण लाइनों को पढ़ा। जिसमें गुरु की अपरंपार लीला, गुरु की महिमा के बारे में बताया गया है। अपने सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें, जय गुरुदेव

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