जय गुरुदेव, इलाहाबाद की धरती पर त्रिवेणी संगम बाबा जयगुरुदेव जी ने पूर्व में जो सत्संग दिया, उसके कुछ महत्त्वपूर्ण अंश आपके साथ साझा किए जा रहे हैं। गुरु पूर्णिमा त्रिवेणी संगम पर सत्संग कार्यक्रम, पूरे कार्यक्रम की मैदान व्यवस्था, बाबा जयगुरुदेव के सत्संग वाणी को पूरा पढ़ें, चलिए शुरू करें। जय गुरुदेव
गुरु पूर्णिमा त्रिवेणी संगम पर सत्संग कार्यक्रम
एक ओर से गंगा की आती बलखाती धारा दूसरी ओर से यमुना की अथाह जल राशि की धीमी चाल और त्रिवेणी संगम पर दोनों का मिलन यह है प्रयागराज की महत्ता। वर्ष 1996 की गुरु पूर्णिमा यही मनाई गई. कार्यक्रम 28 से 31 जुलाई 1996 तक का था। मगर बाबा जयगुरुदेव जी 18 जुलाई को ही मैदान में पहुँच गए थे।
भारी तैयारियाँ हुई थी और तमाम प्रांतों से लाखों प्रेमियों ने भाग लिया। जब कार्यक्रम का प्रचार हो रहा था। तो लोगों ने यह कहा कि बरसात का मौसम है। बाढ़ आती है, क्या बाबा जी सब को डूबा देंगे। सब के भ्रम और भ्रांतियों को दूर करता गुरु पूर्णिमा का महोत्सव संगम तट पर मनाया गया।
उमड़ते जन समूह ने इलाहाबाद निवासियों को झकझोर दिया। वही के लोगों ने कहा कि कुंभ मेले पीछे छूट गए, कुंभ में प्रेमी आते हैं, नहाते हैं और चले जाते हैं। कल्पवास के लिए थोड़े से लोग रहते हैं।
पूरे कार्यक्रम की मैदान व्यवस्था
लेकिन बाबा जी के यहाँ जो आए वह पूरे कार्यक्रम तक जमे रहे, मैदान की व्यवस्था बिजली, पानी की, ढेरों की साफ-सफाई और के लिए आश्चर्यजनक विषय था। वही के लोगों ने कहा कि कुंभ के महीने पहले सरकारी तंत्र उठाते हैं।
तैयारियाँ शुरू की जाती हैं और कुल लेकर उतनी ही तैयारियाँ मैदान में हुई. पर यहाँ समय कुछ नहीं लगा। देखते ही देखते संगम का मैदान हर दृष्टि से आकर्षण का केंद्र बन गया और देखने के लिए शहर के लोगों का तांता पूरे दिन लगा रहा।
गंगा मैया और यमुना मैया ने पूरा सहयोग दिया। जय गुरुदेव बाबा ने सब की मर्यादा रखते हुए सब का सम्मान कराते हुए. आए हुए श्रद्धालु प्रेमियों जिज्ञासाओं से गंगा और यमुना को प्रणाम करवाया और यह प्रार्थना कराई की मैया तुम हमारे बाल बच्चों का ख़्याल रखना।
यह परिवर्तन का संकेत
यह ताज्जुब की बात थी कि धर्म व जाति संघर्ष के इस दौर में आए, हर तबके के चाहे हिंदू हो, या मुसलमान और छोटा हो या, बड़े सब ने सिर झुकाया। यह परिवर्तन का संकेत था।
मल्लाह बाबा जी के पास आए और बोले कि महाराज नाव में बुक कर लीजिए.
बाबा जी ने हंसते हुए कहा कि इतने लोग आए हैं कि-कि तुम नावे नहीं दे सकोगे। स्वामी जी ने प्रेमियों को आदेश दिया कि वह नाव में बैठे या ना बैठे, मल्लाह को पैसा ज़रूर दें। क्योंकि वे उनका घाट है और उनका हक़ है।इसी प्रकार पंडित के पंडों के लिए भी कहा कि वे चाहे चंदन लगाएँ, या ना लगाएँ, उन्हें दक्षिणा अवश्य दें।
क्योंकि यह भी उनका हक़ है। प्रेमियों ने स्वामी जी महाराज के आदेश का पूरी तरह से पालन किया। यद्यपि मल्लाहओ ने पैसा लेने से इनकार किया। पर प्रेमियों ने नाव पर ना चढ़ते हुए भी उनकी नाव पर पैसा रख दिया।स्वामी जी ने मल्लाह और प्रेमियों को समझा दिया था कि इतना जनसमूह आ रहा है कि अगर नाव में ज़्यादा लोग बैठ गए, तो दुर्घटना हो सकती है और यह ठीक नहीं होगा।
जीवआत्मा प्रेत योनि में
भूतों का मंडप अलग बनाया गया। स्वामी जी ने कहा कि डूब कर मरने से, जलकर मरने से, ज़हर खाकर मरने से, चाकू गोली खाकर मरने से, जीवआत्मा प्रेत योनि में चली जाती है। संगम पर भूतों का समूह था। जिन लोगों को भूत लगे थे। वे लोग मंडप की परिक्रमा करते थे और बाबा जी के आदेश का पालन करते थे।
वह भूत जो बच्चे बच्चियों पर था। अन्य किसी पर लगे थे, उन्हें छोड़ देते थे। 29 जुलाई की रात्रि में यमुना थोड़ी उछली और दूसरी तरफ़ गंगा ने भी क़दम बढ़ाए, मल्लाह और पंडों में बेचैनी हुई और प्रशासन सतर्क हुआ।
स्वामी जी महाराज के पास संदेश आया कि पानी बढ़ रहा है। अतः मैदान खाली कर देना चाहिए. स्वामी जी ने सब को आदेश दिया कि सब लोग अपने-अपने सामान बाँध लो, यही तो स्वामी जी महाराज की विशेषता है कि उनका हर काम मनावे जैसा ही होता है।
गुरु पूर्णिमा की पूजा संगम पर
अगले दिन गुरु पूर्णिमा की पूजा संगम पर संपन्न हुआ। लेकिन प्रशासन चिंतित था। कि लाखों लोगों के जीवन मरण का प्रश्न था। लखनऊ सचिवालय में बराबर संपर्क जिलाधिकारी का बना हुआ था। जिलाधिकारी ने स्वामी जी महाराज से प्रार्थना किया कि मैदान जल्दी से जल्दी खाली कर दें,
और जो भी प्रशासनिक सहयोग चाहे ले ले। 30 जुलाई को प्रातः पूजा समाप्त होने के बाद सत्संग हुआ। फिर स्वामी जी ने प्रेमियों को आदेश दिया कि वे जल्दी से जल्दी मैदान को छोड़कर ऊपर की तरफ़ चले जाएँ। देखते ही देखते प्रेमियों का जाना शुरु हो गया।
स्त्री पुरुष बच्चे सब अपने-अपने सामानों को लेकर सत्संग का मैदान छोड़ने लगे, ऐसा लग रहा था कि चिड़िया झुंड के झुंड है। साथ में डेरे टेंट और जो टीनो के चादरों से जगह बनाई गई थी। फटाफट उखड़ जाने लगी।
सेना के सिपाही भी आश्चर्यचकित थे
इस कार्य को देखकर यमुना जी के किनारे बने पुराने किले पर से सेना के सिपाही भी आश्चर्यचकित थे। उधर धीरे-धीरे दोनों नदियों के पानी का फैलाव बढ़ने लगा। स्वामी जी महाराज की कृपा से बांस बलिया बिजली के तार माइक टीनो की चादर पानी के पाइप लाइन का कुछ ही घंटों में होना था।
स्वामी जी का डेरा उखाड़ कर सड़क पर लेटे हनुमान मंदिर के दूसरी तरफ़ पड़ गया। पानी के बढ़ने का क्रम धीमा था और मेला मैदान में सिमटा का काम तेजी पर था। टीन तथा बांस बल्ली यों को पढ़ने में भूतों ने भी बड़ा सहयोग दिया।
वे भी महात्माओं की दया से भीख मांगते रहे हैं। रात्रि के 12: 00 बजे तक पूरा संगम का मैदान खाली हो चुका था और गंगा जमुना का जल एक हो गया था। सड़क से पानी की लहरें टकराने लगी थी। सब हैरत में थे लोगों ने कहा मिलिट्री फेल हो गई.
सेवादार स्वयं आश्चर्यचकित
सेवादार स्वयं आश्चर्यचकित है कि जो सूतो के बंधन रस्सी में भी खोलने में परेशान करते थे, वह अंधेरे में फटाफट खुलते जा रहे थे और एक ही झटके में बल्ली ज़मीन में से ऊपर आ जाती थी और टीनो की चादर जो लगी थी। एक बार में घनघोर आवाज़ करके अलग हो जाती थी।
गुरु पूर्णिमा के दिन 30 तारीख को सत्संग के बाद स्वामी जी को लोगों ने बताया कि जमुना में गिरने वाला नाला उफान रहा है। उसमें नाव आ रही हैं और सत्संगी उस में बैठकर पर सड़क पर जा रहे हैं। यात्रियों के लिए अस्थाई बलिया डालकर नाले के ऊपर बनाया गया पुल फेल हो चुका है।
उसके ऊपर पानी बह रहा है। एक ही मुख्य मार्ग मुख्य सड़क बाक़ी बची है, जिस पर से होकर अब पार जाया जा सकता है। स्वामी जी की गाड़ी में बैठ कर सड़क तक गए और प्रेमियों को आदेश दिया कि सड़क के अगल-बगल में मिट्टी डालकर पानी के प्रभाव को रोक दो, तत्काल श्रमदान होने लगा। इस प्रकार नाले के रास्ते जमुना पर चढ़ता हुआ पानी का बैग कुछ समय के लिए थम गया।
संगम पर अपने संदेश में स्वामी जी ने कहा
संगम पर अपने संदेश में स्वामी जी ने कहा कि अगर महापुरुष मिल जाए तो उनसे इतना प्रेम करना चाहिए. जैसे माँ बच्चे से प्यार करती है। चकोर चांद से प्यार करता है। वह हिरण नाद से प्यार करता है, बल्कि उससे भी ज़्यादा प्यार गुरु से होना चाहिए.
ताकि संसारी मोह ममता की जकड़ ढीली होकर कट जाए और सूरत जीवात्मा शब्द को सुनने लगे। जब नाम प्रकट होगा। सुरत शब्द को सुनने लगेगी। तब विकार दूर होंगे और मन संसार की तरफ़ से ढीला होगा।
भजन में शब्द सुनाई देने लगेगा, अगर गुरु से प्रेम नहीं करोगे तो संसार के लड़ाई झगड़े में फंसी रहोगे। कुछ हाथ आने वाला नहीं है। इस दुनिया में सब धोखा ही धोखा है। गुरु से प्रेम हो जाए तो उसके बाद अच्छे काम करो। सांसारिक बंधनों से छूटने के लिए काम करो,
आध्यात्मिक बात को समझने के लिए
जितना ज़रूरी हो उतना काम करो। बाक़ी भजन में समय दो ऐसा कोई काम मत करना, जिससे संसार में फंसा हो, जो विचार मान हैं विवेक रखते हैं। उनको समझाया जा सकता है। पर जो मूर्ख है उनकी समझ में कुछ नहीं आता है।
बाबा जयगुरुदेव की आवाज़ है कि आध्यात्मिक बात को समझने के लिए हर मुल्क के लोग को हिन्दी भाषा सीखनी होगी। इंसान अपने आप को जान आध्यात्मिक बात का सारे है। मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? मरने के बाद कहाँ जाऊंगा? जन्म मरण का राज क्या है?
परमात्मा जीते जी मिलता है। मरने के बाद नहीं, जिन्होंने पाया मरने से पहले पाया। इसके लिए पूरे गुरु की मदद ज़रूरी है।
पोस्ट निष्कर्ष
महानुभाव अपने परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा पूर्व में सन 1996 में त्रिवेणी संगम इलाहाबाद पर सत्संग कार्यक्रम किया गया। उसके कुछ महत्त्वपूर्ण अंशों को आपने इस आर्टिकल के माध्यम से जाना। आशा है आपको ए आर्टिकल ज़रूर पसंद आया होगा। आप सभी महानुभाव को जय गुरुदेव इस पोस्ट को अपने फ़ेसबुक व्हाट्सएप टि्वटर और भी सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें। धन्यवाद जय गुरुदेव
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