लड़ाई झगड़ा बंद करो यह परदेस है। हमारा कोई निश्चित नहीं है समय रहते यदि हमने बचने का काम कर लिया तो बच सकते हैं। हम कहाँ जाएंगे किस लिए मनुष्य शरीर मिला, यह तमाम जानकारी हम आपको महात्माओं के आध्यात्मिक सत्संग से मिलेगी। चलिए जानते हैं महात्माओं ने Ladai Jhagda ना करने के बारे में कहा है। जय गुरुदेव,
Ladai Jhagda ना करने के बारे में
पूर्ण महात्माओं के पास प्रेम की गंगा बहाई जाती है। वहाँ नफरत और अहिंसा दुराचार या दुर्व्यवहार जैसे वातावरण को जगह नहीं होती है। ठीक पूर्ण महात्मा जो हमारी गति को जानते हैं अपनी दिव्य दृष्टि से देखते हैं कि हमारे अंत होने के बाद हमारा क्या होता है?
वह महात्मा हमें ऐसे नेक रास्ते पर लाने की पूरी कोशिश करते हैं। क्योंकि संत सतगुरु दयालु होते हैं। वह दया से हमारे ऊपर ऐसा प्रहार करते हैं कि हम दुराचारी भी दीन भाव में समाहित हो जाते हैं। बस अपने ह्रदय भाव से उनके दर्शन या उनकी शरण में जाना चाहिए,
महात्माओं ने हमेशा कहा है कि Ladai Jhagda बंद करो। यह मनुष्य शरीर कुछ ही दिनों के लिए मिला है। आपस में प्रेम रखो और भाईचारे के साथ रहो, मां, बहन, बेटी, भाई सभी की इज्जत करो। इसके बाद भजन में समय दो। इस झगड़े पचड़े में कुछ मिलने वाला नहीं है। व्यर्थ में समय गमा रहे हो, चलिए महात्माओं ने और क्या कहा जानते हैं।
आपको अब कहाँ ले जायेगा
इस मकान (Manav Sarir) को जीते जी छोड़ दें। इसलिये आपको थोड़ा-सा अपना कभी-कभी समय जब ये सुना करो, जबकि यहाँ बहुत भीड़ लग रही है और बहुत लोग आ रहे हैं थोड़ा-सा चले आए और सुन और देखो आकर के और देखो कैसी पूजा देवताओं की और वह देवताओं को देखो कैसे आप उनकी अपनी आँखों से। तब तुम्हारी समझ में आएगा।
ऐसे क्या समझ में आएगा? अँधेरे में ही जन्म हुआ अंधेरे में ही पालन पोषण हुआ! अभी फड़फड़ा के अंधेरे में मर जाओगे अभी देख लेना। अब तो बुड्ढे हो गये तो अब कै दिन का साथ है। इस शरीर का किस दिन भी रात में सोते हुए चल पड़ोगे। ले जायेगा आपको अब कहाँ ले जायेगा उसका आपको पता ही नहीं है।
इसलिए किसी का साथ मत करो। किसी जानकार का साथ कर लो और साथ कर लोगे तो वह रास्ता बता देगा कि चलो इस रास्ते से चलो। बस उस रास्ते से चल दो तो आपको मंजिल पर पहुँचना अपने ही घर में तो घर आत्मा नहीं ये तो परदेश है।
ये परदेश है (Paraye Desh)
अगर देश होता तो बच्चे रहते हमारा शरीर रहता, हमारा मकान रहता, हमारी जमीन रहती। कोई पुराना नहीं होता सब नये रहते। लेकिन आपका मकान है ही नहीं उसने दे दिया किराये पर थोड़े दिन के लिए। बस समय पूरा हुआ निकाल करके बाहर कर दिया। ये आपका कोई सामान नहीं ये परदेश है।
तभी तो दूसरे देश से निकाले जाओगे। अपने देश में पहुँच चलो वहाँ आराम से रहना। वहाँ कोई मरता नहीं है। न वहाँ कोई हिन्दू है न मुसलमान न वहाँ खेती है न दुकान और वहाँ आनन्द ही आनन्द है। अपने घर में अपने ही देश में चलो (Aapne Ghar) ये तो परदेश है। परदेश में आ करके कितने युग बीत गये ठोकर खाते और अभी तक किनारे पर नहीं आये और मनुष्य शरीर पाके फिर उसी में लौटे जा रहे हो।
लड़ाई झगड़ा बन्द करो (Ladai Jhagda Band Karo)
चौरासी और भटकोगे, अरे भाई मनुष्य शरीर में आये हो ऊपर चलो अपने घर की तरफ बड़ा सीधा-सादा लड़ो झगड़ो मत प्रेम से रहो। गाँव-गाँव की लड़ाइयाँ बन्द करो इससे आपको कुछ नहीं मिलना। जब गाँव में लड़ाइयाँ (Ladai) हुई तो घर-घर में झगड़ा (Jhagda) होने लगा अब घर-घर में लड़ाइयाँ होने लगीं अब घर की लड़ाई अब अपने मन लड़ने लगे और सारा जीवन आपने नष्ट कर दिया,
न सोने में शान्ति न कहीं जाने में शान्ति न कहीं बैठने में शान्ति न किसी से बोलने में Shanti न किसी देवता के पास में। ऐसा तुमने मकान में कचरा भरा है और वह ज्वाला की तरह जलने लगी। तो Ladai Jhagda बन्द करो। मारपीट बन्द कर दो। आपस में घर में प्रेम से रहो सब लोग भाई बहन बच्चे सभी लोग प्रेम से रहो और फिर गाँव में आपस में प्रेम हो जाय और एक दूसरे की सेवा करो।
मान मर्यादा से सब कुछ रखो तभी अगर मनुष्य का प्रेम क्षणिक सुख लेना चाहते हो तो शान्ती और आनन्द तो आपको मिलेगा। लेकिन ये क्षणिक है। जब तक जीवात्मा मनुष्य मन्दिर में जाओगे नहीं और दिव्य दृष्टि खोलोगे नहीं तब तक तुमको आतम परमातम का शान्ती नहीं मिलेगी।
अभी बच सकते हो (Samay Rahte)
ये तो इन्द्रियों क्षणिक हैं। यानी कि ठंडक आ रही है उससे मन इन्द्रियों के दरबाजे पर बैठ करके क्षणिक रस लेता है कि और मिल और मिल जायेगा घर में और मिलेगा बच्चों में और मिलेगा इसमें और मिलेगा उसमें मिल जायेगा उस काम में मिल जायेगा, व्यापार में मिल जायेगा और मिलता जुलता कुछ नहीं है और सिवाय तकलीफ के,
और कुछ नहीं आनन्द (Aanand) मिलता और आप ने सब प्रयास किसलिए किया कि सुख मिले शान्ती मिले आनन्द मिले और उसमें से सब कुछ करने के बाद न शान्ती मिली न सुख मिला, न आनन्द मिला, न ज्ञान मिला और आग जलने लगी।
ऐसा जीवन आपका बड़ा ही कल्प बीत गया और बहुत ही खतरनाक अपनी आत्मा को गढ्ढे में गिराने में हो गया है और दरवाजे पर बैठ गये अब जाने वाली है। इसलिए बच्चो अभी बच सकते हो मनुष्य शरीर में और बाद में बचने का रास्ता नहीं है।
किसलिए मनुष्य शरीर में (Manushy Sarir)
इसलिए उसको सोचो मैं कहाँ से आया हूँ मैं, किसलिए मनुष्य शरीर में आया हूँ। फिर मैं अगर जाऊँगा तो कहाँ जाऊँगा। ये तीनों प्रश्न किसी से करने लगो जो जानकार होगा कि तुम वहाँ से आये हो और किसलिए आये हो? और तुम कहाँ जा रहे हो ये तीनों चीजें आपको बता देगा तब आपकी समस्या का बुद्धि का विवेक आयेगा।
तब समझोगे आपको बतायेगा कि वह कुछ नहीं है कि तुम कहाँ से आये बतायेगा कि वहाँ सब कुछ है। यहाँ वहाँ चलो सब धन है सब सुख है सब आनन्द है, सब शक्ति है सब ज्ञान है। सब सुन्दरता अमृत वहाँ भरा हुआ है सागर भरा सब बता देगा।
सुझाव: Ladai Jhagda (लड़ाई झगड़ा)
महानुभाव लड़ाई झगड़ा hote समय आप यदि इन बातों का ध्यान रखते हैं तो हो सकता है कि आपका Ladai Jhagda रुक सकता है। चलिए कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण पॉइंट है जिन पर फोकस करना जरूरी है।
- अगर आप लड़ाई झगड़े से परेशान हैं तो Fist पॉइंट यह है कि आप शांत हों। अपने आप को शांत (Sant) करने के लिए गहरी सांस लें और अपने विचारों को ध्यान दें।
- दूसरा पॉइंट यह है कि आप अपने विरोधी (Opponent) के साथ स्पष्ट तौर पर बातचीत करें, ध्यान रखें कि आप विरोधी के साथ संवाद (Dialogue) कर रहे हैं, न कि उससे लड़ रहे हैं। बातचीत के दौरान सुनने का प्रयास करें और विरोधी के विचारों को समझने (Samjhane) की कोशिश करें।
- तीसरा पॉइंट यह है कि आप समझौता करें। दोनों पक्षों के बीच कुछ समझौता (Settlement) करना बेहतर होगा और आपको दोनों के साथ संभवतः बेहतर सम्बंध (Relationship) बनाने में मदद मिलेगी।
लेकिन अगर Ladai Jhagda में आपको संधि नहीं मिलती है तो सम्बंधों को खत्म करना एक विकल्प हो सकता है। इससे पहले इसे Solution करने का प्रयास करें, लेकिन यदि सम्बंध सुधारने का कोई समाधान नहीं है तो इसको समाप्त करना संभवतः सबसे अच्छा Biklp होगा।
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निष्कर्ष:
ऊपर दिए गए आर्टिकल के माध्यम से आपने लड़ाई झगड़ा (Ladai Jhagda) नहीं करना चाहिए इसके बारे में आध्यात्मिक बातें जानी। आशा है आपको ऊपर दी गई जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। मालिक की दया सब पर बनी रहे, सब के अंदर विवेक पैदा हो और सभी आपस प्रेम भाव में रहे। जय गुरुदेव,
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