जय गुरुदेव, सत्संग प्रेमियों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपके लिए परम पूज्य जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा दिए गए सत्संग के महत्त्वपूर्ण अंशों, जिसमें एक साधक जब साधना करता है तो वह अपने आध्यात्मिक रूहानी मंडलों में सफ़र करता है। उसे माया का कैसे प्रभाव महसूस होता है? आदि बातों को इस सत्संग आर्टिकल में आपके साथ साझा कर रहे हैं। आप पूरा पढ़े, जय गुरुदेव।
साधक के दया के निशान
जब साधक का साधन में मन लगे प्रेम आवे विरह सतावे, संसार नाशवान दिखाई दे, गुरु के सिवा और कोई हितकारक नज़र ना आवे और शब्द लगातार बगैर मुद्रा लगाए सुनाई दे उस वक़्त गुरु की महान दया समझना और जानना चाहिए,
ऐसी अवस्था में साधक को और तेजी के साथ साधन करना चाहिए, ताकि अंतर में शब्द की धारा जारी हो जाए. मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार कुत्तों की गति में चल रहा है। जो मनुष्य काम के वशीभूत है वह कामी कुत्ता है उसे हड्डी से मोह रहेगा और हड्डी में रस नहीं होगा।
तीसरे तिल में पहुँचने पर
जब साधक गुरु कृपा से तीसरे तिल पर पहुँच जाता है और तिल का विरह अंग लेकर फोड़ देता है तब साधक की सुरत लिंग देश में पहुँचना शुरू करती है। साधक की सुरत गुरु कृपा से तीसरे तिल पर टिकने लगे उस वक़्त ऐसा मालूम होता है कि हमने गुरु से प्रश्न किया और तुरंत उत्तर दे दिया।
साधक की सुरत जब तिल फोड़ लेती है और स्वर्ग बैकुंठ धाम या शक्ति लोक की तरफ़ चढ़ना प्रारंभ करती है, उस समय साधक के गिरने के अनेक साधन बनना शुरू हो जाते हैं। एक तो साधक को सिद्धि प्राप्त होती है। जो कि अनेक प्रलोभन साधक को देती है। अनेक मन मोहिनी सूरते नज़र आनी शुरु होती है। साधक ने इतना मनमोहन रूप नहीं देखा है।
अंतर की रचना
जब साधक अपनी साधना से अंतर की रचना को देखता है, जैसे एक सुंदर स्त्री यहाँ पर यदि किसी साधक की निगाह में आ जाए. तो साधक उसकी ओर बहुत देर तक देखता है और जो विकार पैदा हुआ देखकर वह जल्दी नहीं जाते हैं।
वैसे ऊपर के लिंग लोक में साधक को स्त्रियाँ भी मिलती हैं। उनके रूप बड़े अद्भुत हैं। जिन्हें देखकर साधक उनको छोड़ना नहीं चाहता है। साधक कहता है कि मैं उनको देखता रहूँ और यही पर रहूँ चाहे गुरु मुझसे छूट जावे। पर हम इसको नहीं छोड़ेंगे। वह सुंदर स्त्रियों के लोक हैं गुरु को सर्वदा के लिए साधक त्यागना पसंद करता है, परंतु उनके पास से नहीं हटना चाहता है।
साधक के मन को खींचना
दिल सदा चाहता है कि मैं यहाँ से हटो नहीं। इन्हीं की छवि को देखता रहूँ। जब वहाँ की मन मोहिनी महामाया साधक के मन को खींच लेती है उस वक़्त मंडल पर बड़े-बड़े दृश्य नज़र आने लगते हैं, जो कि माया के बने होते हैं।
ब्रह्मा विष्णु और शिव को हुक्म होता है कि तुम अपनी कला के द्वारा साधक को हमारी ओर मत आने देना। साधक को साधना में बड़े-बड़े डांस नृत्य नज़र आते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि आंखों के सामने स्त्रियाँ आ जाती हैं और उनके नाच होना शुरू होते हैं।
Sadhak ऊपर नीचे दाएँ बाएँ देखता है तो उन्हें मोहिनी शक्लो को देखता है, वह उनके साथ बिहार करता है। आप किसी क्लब में जाओ जहाँ पर अंग्रेज़ी डांस होता हो, वहाँ से आपका मन नहीं हटता और दौड़कर लोग रोज़ जाते हैं।
Sadhak की बाधा माया
साधक के लिए बड़ी कठिनाई है जब कि चेतन माया अपना खेल दिखाकर अपना हाथ गले में डाल देती है। वहाँ स्त्रियों का हाथ अति मुलायम है। जिस साधक की गले में स्त्रियों का हाथ हो वह चारों तरफ़ साधक उन्हीं स्त्रियों को देखता हो बताओ किस का नशा चढ़ेगा।
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Sadhak किसी हालत में माया से छुटकारा नहीं पा सकता। जब माया ने साधक के मन पर अधिकार जमा लिया और माया ने समझ लिया कि गुरु इनके यहाँ से उठ गया। उसी समय माया अनेक फुरना पैदा करके साधक को गिरा देते हैं। साधक ऐसी अवस्था होती है। जैसे कामी कुत्ता क्वार के महीने में पागल होकर चारों तरफ़ काम के वशीभूत होकर नाचता है।
साधक को गुरु की ज़रूरत है
Sadhak को गुरु की इसलिए ज़रूरत है। जब सुरत गुरु कृपा से तीसरा तिल फोड़ेगी उस वक़्त शक्तियाँ साधक के पास गिराने हेतु आएंगी। यदि गुरु समरथ है तो साधक को बचा लेगा। नहीं तो साधक अपनी साधना में गिर जाएगा।
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एक तो बगैर गुरु के नाशवान संसार नहीं छोड़ता। गुरु ने साधक के साथ बहुत जबरदस्त कृपा की और कुछ समय में जाकर संसार से बैराग कराकर साधना में लगाना चाहा तो साधक के लिए अनेक विघ्न अंदर और बाहर हैं।
अनेक प्रकार के वचनों को सुनना
जब साधक गुरु के पास गया और सत्संग करना शुरू कर दिया और गुरु समझ परमारथ की आनी शुरू हुई और संसार नाशवान मालूम पड़ने लगा और कुछ काम संसार का कम किया उसी वक़्त घरवाले कुटुम्ब जाति बिरादरी पहुँचने लगे।
अनेक प्रकार के वचन सुनाना शुरू किया। तुमने जाती छोड़ी, अपनी बिरादरी से मुख मोड़ा। तुम्हें अब लज्जा समाज की नहीं। तुमने बेशर्म रास्ता अपना लिया और महात्मा अच्छे नहीं, दूसरे गुरु कर लिया। अब अपनी जाति में तुमने कलंक लगा दिया। तुम्हें शर्म आनी चाहिए.
छोड़ दो वह रास्ता अनेक दबाव देकर बहुत से परमार्थी स्त्री पुरुष का रास्ता बिरादरी सच्चे रास्ते छुटा देते हैं और उनको सदा के लिए गुमराह कर देते हैं। साधक बाहर की परेशानी से गुरु को त्याग देता और यहाँ तक देखने में आता है कि उसी गुरु का विरोधी बन का पूरी मुखालफत करता है। यहाँ तक कि बहुत से लोगों ने महात्माओं के प्रति झूठी गवाही भी कचहरी में दी हैं।
पोस्ट निष्कर्ष
महानुभाव ऊपर दिए गए आर्टिकल में आपने परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा पूर्व में दिए गए सत्संग वचनो को पढ़ा। आपको ज़रूर अच्छा लगा होगा। सतगुरु की महान कृपा हम सब पर हो, जय गुरुदेव।
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साधक के प्रति गुरु के वचन कैसे और क्या?
साधक के क्या-क्या कर्तब्य होना चाहिये?
Jai Guru Dev