दिव्य दृष्टि खुलने पर कैसा अनुभव होता है

दिव्य दृष्टि प्राप्त करने की साधना, दिव्य दृष्टि कैसे प्राप्त होती है? दिव्य दृष्टि का प्रयोग कहाँ से किया गया। सिर्फ दृष्टि खोलने से कैसा प्रतीत होता है जब आपकी आँख खुलेगी कैसा प्रतीत होता है अंदर की आँख खुलने पर कैसा अनुभव होता है? आध्यात्मिक सत्संग।

दिव्य दृष्टि खुलने पर कैसा अनुभव होता है
दिव्य दृष्टि खुलने पर कैसा अनुभव होता है

‘सुन री सखी तोहि भेत बताऊ’

सन्त महात्मा कहते हैं कि ऐ सुरत! (सुरत कहते हैं आत्मा को, रुह को, जीव Soul को) तू सुन! मैं आपको कुछ प्रथम स्थान का भेद बताता हूँ जहाँ से तीनों लोक की रचना हुई तीनों लोक का विस्तार हुआ। वहाँ का मैं तुझे हाल चाहता हूँ। तू वहाँ फंसी पड़ी हुई है। ऐ रुह तुझको किसने फंसा रक्खा? तो साफ बयान करते हैं कि:

सुन री सखी तोहि भेद बताऊँ
प्रथम स्थान खोल कर गाऊँ॥

जब आपकी आँख खुलेगी

सखी कहते हैं सुरत को। वह पहला स्थान स्वरूप नारायण भगवान का भाई वह कैसे मिलेगा? जब आपकी आँख खुलेगी। जब तक तुम्हारी आँख नहीं खुलती है वह मिल नहीं सकता। तुम लाख जतन करो मगर वह मिल कभी नहीं सकता। तड़प-तड़प कर कितने मर गये, सिर में मिट्टी मल कर मर गये, जंगलों में तप करके मर गये, जब तक यह आँख नहीं खुली तपस्या का फल अवश्य मिल गया लेकिन यह आँख जब तक नहीं खुली तब तक उनको तीनों लोक का मालिन नहीं मिला।

पहले स्थान पर तीन लोक का मालिक है। उसने किस-किस का विस्तार किया? आद्या महाशक्ति उसकी है। ब्रह्मा उसके नौ करोड़ दुर्गा उसके, शिव उसके, तेतीस करोड़ देवता उसके, विष्णु उसके, दस करोड़ शम्भू उसके हैं। इन्हीं के महाजाल में उसने हमको फंसा दिया।

फिर जब हम पिण्ड मैं उतर आये तो क्या लगा दिया? काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार मन और माया। ये हमारे साथ में जाल लगा दिए। फिर उसके साथ में जो भी चीज हैं-नाना वासनाऐं। यह विस्तार फैला दिया। तो बयान करते हैं कि भाई तीनों लोक का जो विस्तार हुआ वह ज्योति नारायण भगवान से। वह वहाँ पर बैठा हुआ है।

सहस कंवल दल नाम सुनाऊँ।
ज्योति निरंजन बास लखाऊँ॥

आंखों से जब देखा तो

बड़ा साफ बयान करते हैं जो उन्होंने गुरु चरणों में बैठकर अनुभव किया है तो कहते हैं कि भाई वह सहस दल कंवल है जिसकी सहस्र धाराऐं निकली हुई हैं। उसको सहस्त्रार भी कहते है। वहाँ पर बैठा हुआ है। क्या रूप है? उसको कहते हैं ज्योतिस्वरूप भगवान। आंखों से जब देखा तो उन्होंने कहा।

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जब तक आंखों से न देखें तब तक ऐसी हालत का खुल-खुलकर कैसे बयान किया जाए? बड़ा स्पष्ट बयान कौन कर सकता है? जो आँख से देखेगा जब तक वह आँख नहीं खुलती तब तक कोई देख सकता है? इस आँख के सामने लाखों परदे पड़े हुए हैं।

जब स्वामी जी महाराज के पास गया और उन्होंने यह रास्ता बताया जो आपके सामने है तो मैंने एक दफे प्रश्न किया कि स्वामी जी! इस रास्ते में कुछ नहीं, बिल्कुल अंधकार दिखाई देता है, अनेक परदे पड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि बेटे! उनको धीरे-धीरे काटते जाओ देखते जाओ। कहते हैं अनन्तों परदे आँख के सामने पड़े हुए हैं वह अनेक जन्मों के हैं।

आत्म नजर

गुरु की इतनी बड़ी कृपा है कि उस नजर की तेज धारा से सब परदे कटते चले जाते हैं। वह नजर आत्म नजर जिसको कहते हैं। तलवार, तीर, एटम बम से भी तेज होती है। इतनी चाक करती जाती है कि अनन्तों जन्मों के परदे जो हैं, चट्टानों की तरह जो जमा हुआ है उनको छेदन करती चली जाती है। सबको खोद कर पहाड़ की तरह से निकालकर फेंक देती है।

इस आत्म दृष्टि में इतनी तेज धारा है उतनी कोई तेज नहीं है। तुम दरवाजे पर बैठ कर के इन परदों को साफ करो। भाई किसकी कृपा से? गुरु की कृपा से यह काम होता है। दोनों आंखों के पीछे यह आत्मा छिपी पड़ी हुई है। वह बिचारी बन्द हो गई है। उसको खोलने की थोड़ी जरुरत है।

बस चाक करती चली जायेगी। परदे खुद खुलते चले जायेंगे और तुमको दिखाई देने लगेगा, लाईट आने लगेगी, प्रकाश होने लगेगा। भाई! सूर्य की तरह जलवा जब खुलने लगे तो जो चीज इस मण्डल में है क्या कहते हैं

श्री गुरु पद नख मणि गण ज्योती।
सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती।

हम बाहर अपनी शक्ल देखते

भाई! यह वही दरवाजा है। वह अन्तर में एक समूह, प्रकाश मणियों का है, उसको कहते हैं गुरु चरण। जब तुम उसको स्मरण करोगे तो दिव्य नजर हो जायेगी। वह एक आला है, एक शीशा है जैसा हम बाहर अपनी शक्ल देखते हैं वह गुरु चरण हैं, राम चरण है, कृष्ण चरण कहो, मालिक के चरण कह लो, वह शीशा कितना सफेद है कि उसकी तारीफ यहाँ नहीं की जा सकती।

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कोई चीज इतनी सफेद हो ही नहीं सकती जिसका नमूना मैं आपको बता दूँ। हीरे, मोती का पटतर दे दूं, जन्म का पटतर दे दूं, किसी चीज का पटतर दे दूं लेकिन जितनी सफेदी उस शीशे पर है और किसी पर नहीं। कहते हैं वह शीशा क्या है? गुरु चरण। उसको स्मरण करो उसको देखो, दरवाजे पर बैठकर देखो तो वह चमकता हुआ नजर आयेगा, समझ गये।

गोस्वामी जी ने रामायण में कहा है, नख की तारीफ की है। आपने देखा होगा दूज का चांद। जो लोग मुसलमान हैं या अपने मजहबों में ये भी बड़ा शुभ माना जाता है और लोग दूज के दिन देखते हैं और उसका और अपना बड़ा भाग्य सराहते हैं। तो दूज का चांद नख के समान होता है।

बिल्कुल खुल्लमखुल्ला

बिल्कुल ठीक जैसा कि वह नाखून रहता है, ठीक उसी तरह से गोलाकार छोटा-सा। कहते हैं कि ठीक जब आपकी आँख थोड़ी-सी खुलती है तब ठीक उसी तरह से वह नख नजर से आता है। गोस्वामी जी महाराज बयान करते हैं कि जब आपकी नजर मिलेगी तो पूरा खुल जायेगा और उसको कहते हैं चांद। वह है आला, शीशा देखने का। आप उसमें शक्ल देख सकते हो अच्छी तरह से और फिर उसी में होकर न मालूम कितनी शक्लें देख लो।

वह ऐसा उलटा है। जब आप ऐसे देखो तो नीचे से सारी चीजें दिखाई देती हैं बिल्कुल खुल्लमखुल्ला। यहाँ क्या हो रहा है, वहाँ क्या हो रहा है, कौन क्या कर रहा है। अमेरिका में क्या हो रहा है, रूस में क्या हो रहा है? आपकी गुप्त से गुप्त मीटिंग भी उस आले में से दिखाई पड़ती है। उसी को क्या कहते हैं कि महात्मा अन्तरयामी होते हैं।

यही वह आला जो आपके पास है। लेकिन जब दरवाजे पर बैठ जाओ तो उसी में नजर आने लगे पर हमको बैठने का मौका नहीं मिला और गुरु भी ऐसा नहीं कि आपको जोर देकर यहाँ बैठाता। बगैर अनुभवी गुरु के यह मुश्किल है, इसलिये पूरे गुरु की बात धर्म पुस्तकों में कही गई है। (सत्संग-1982)

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