ध्येय स्वरूप ब्रह्म कौन हैं? सर्गुण व निर्गुण ब्रह्म का वर्णन, अक्षर ब्रह्म कौन है, ब्रह्म मतलब क्या है, पूर्ण ब्रह्म का नाम क्या है? कौन व किसे कहते हैं? पुरा पढ़े।
सर्गुण व निर्गुण साकार निराकर दोनों से परे, साक्षी का भी जो साक्षी है प्रकाशक का भी जो प्रकाशक है, व्यापक में जो व्यापक है, अन्तरयामी का भी जो अन्तरयामी है, नियामक और नियन्ता को भी नियम में चलाने वाला है, हिरण्य गर्भ विराट मूल प्रकृति को भी जो नियम में बाँधने वाला है, आद्या महाशक्ति व अलख निर्गुण निरंजन निराकार ज्योति स्वरूप जो ब्रह्म है जो उसको शासन में चलाने वाला है और श्रुतियाँ जिसको नेति-नेति कह करके पुकारती हैं, बस वह ब्रह्म ध्यान और आराधना करने योग्य है।
मुख्य ध्येय स्वरूप ब्रह्म का वर्णन
(2) जो ब्रह्म को भी उत्पन्न करने वाला है वहीं ब्रह्म रूप अद्वितीय सनातन परमात्मा ध्यान करने योग्य है
(3) जो विष्णु अन्तरयामी रूप से समस्त विश्व रूप में व्यापक और समस्त विश्व के पोषक उन विष्णु में जो भी अन्तरयामी रूप से व्यापक और पोषक है वही विष्णु का भी जो विष्णु है वही परम ब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
(4) जो रूद्र समस्त शिव को संहार करने वाला है रूलाने वाला है वही रूद्र स्वरूप पार ब्रह्म परमात्मा जो कि रूद्रों का रुद्र है वह भजन करने योग्य है।
(5) जो शिव समस्त विश्व को कल्याण का देने वाला है उस शिव को भी जो कल्याण देने वाला है जो कि शिव का भी शिव है वहीं परम शिव स्वरूप पर ब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
स्वरूप पर ब्रह्म ब्रह्म कौन
(6) जो इन्द्र तीनों लोकों का शासन करता है उस इन्द्र पर भी शासन करने वाला जो इन्द्र है वही इन्द्र स्वरूप पर ब्रह्म भजन करने योग्य है।
(7) जो समस्त पापियों और पुण्य आत्माओं के लिए सरख दाख स्वर्ग नरक आदि का विधान करता है उस यम को जो अपने विधान में चलाने वाला है वही परम स्वरूप परमात्मा भजन करने योग्य है।
(8) जो चन्द्र का भी चन्द्र है, जो सूर्य को भी ज्योति का प्रदान करने वाला सूर्य है वही परम स्वरूप परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
(9) जो विष का भी विष और अमृत का भी अमृत है अर्थात अमृत में भी अमृत तत्व जिसमें है वह परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
(10) जो शेष समस्त विश्व को धारण करने वाला है उस शेष को भी धारण करने वाला है वह शेष स्वरूप परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
सर्गुण निर्माण दोनों से परे
(11) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आकाश और महातत्व आदि जिसके आधार पर अवलम्बित हैं जो सर्गुण निर्माण दोनों से परे है और दोनों का साक्षी प्रेरक और प्रकाशक है वही सच्चिदानन्द परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
(12) जो कामधेनु का भी कामधेनु है, कल्पतरू का जो कल्पतरू है वरदाताओं का भी वरदाता है, दानवीरों में जो शिरोमणि है वही अद्वितीय परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
सच्चिदानन्द परब्रह्म
(13) जो अनन्त सत कोटि चन्द्रमा के समान शीतल है जो अनन्त सतकोटि सूर्य के समान प्रकाशवान है जो अनन्त सत कोटि कामधेनु के समान सुन्दर है वही सच्चिदानन्द परब्रह्म परमात्मा भजन करेन योग्य है।
(14) जो अनन्त सत कोटि चन्द्रमा के समान शीतल है जो अनन्त सतकोटि सूर्य के समान प्रकाशवान है जो अनन्त सत कोटि कामधेनु के समान सुन्दर है वही सच्चिदानन्द परब्रह्म परमात्मा भजन करने योग्य है।
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