Chamatkar Ko Namaskar यह कहावत | स्वामी जी महाराज द्वारा

चमत्कार को नमस्कार (Chamatkar Ko Namaskar) यह कहावत बहुत ही मानी गई है. वास्तव में महात्माओं द्वारा कुछ ऐसा चमत्कार (Chamatkar ) होता है जिसको लोग नमस्कार (Namaskar ) या वाह-वाह करने में आधा सकते हैं. ठीक इसी प्रकार से स्वामी जी महाराज ने सत्संग के माध्यम से कुछ ऐसे चमत्कार किए जिसको लोग नमस्कार करते रह गए, चलिए जानते हैं इसमें कुछ स्वामी महाराज द्वारा बीती हुई बातों के माध्यम से बताया है कुछ Chamatkar Ko Namaskar स्टोरीज के माध्यम से जानेंगे.

Chamatkar Ko Namaskar
Chamatkar Ko Namaskar

सत्संग सुनाते हुए कहते कि: Chamatkar

बाबा जयगुरूदेव ने सत्संग की शुरूआत उत्तर प्रदेश के बनारस जिले से की। उसके बाद आजमगढ़, गोरखपुर आदि जिलों में इसका प्रचार प्रसार बढ़ता गया। उन्हीं दिनों की बात है कि एक दरोगा जी स्वामी जी महाराज के पास आते जाते थे। स्वामी जी उन्हें सत्संग सुनाते और कहते कि अकारण जोर जुल्म नहीं करना चाहिए। निर्दोष जीवों की आह जब लग जाती है तो मालिक जुल्मों का बर्दाश्त नहीं करता है।

घूस लेने के सम्बन्ध में स्वामी जी सुनाते थे कि वैसे तो घूस नहीं लेना चाहिए। यदि लिया भी जाय तो दाल में नमक के बराबर तो वह क्षमा हो सकता है। किसी का दिल दुखाकर जबरदस्ती लिया हुआ धन कमी फलता नहीं है. दरोगा जी स्वामी जी महाराज की बातें सुनकर हंसते थे और अनसुनी कर देते थे।

एक बार रेल से उन्हें बाहर जाना था। ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी और दरोगा जी किसी से बातें कर रहे थे। गाड़ी सीटी देकर चलने लगी तो ये दोड़ कर डब्बे में चढ़ने लगे। अचानक हैन्डिल से उनका हाथ छूट गया और गिर पड़े पटरी के नीचे पहुंचे तो एक पैर उनका पहिये से कट कर अलग हो गया। गाडी रूकी उन्हें निकाला गया। स्वामी जी महाराज को जब यह समाचार बाद मे सुनाया गया तो बोले कि यही क्या कम है कि उनकी जान बच गई Chamatkar ।

भण्डारा का महान पर्व

प्राय: लोग ऐसा कह देते है कि आकुल ने भण्डारा किया या अमुक ने भण्डारा किया। कोई जन्मा तो भण्डारा किया कोई मरा तो भण्डारा किया। कछ पुरानी बातें फिल्म की रील की तरह आंखों के सामने गुजरी ऐसी बात सुनकर।

बात सन् 74 के भण्डारे के बाद की है। भण्डारा का महान पर्व समाप्त हो चुका था। काफी संख्या में प्रेमी जन अपने अपने घरों को वापस भी जा चुके थे फिर भी काफी लोग आश्रम पर ठहरे थे। कछ प्रेमियों ने स्वामी जी महाराज के सामने एक अर्जी रखी कि एक छोटा मोटा भण्डारा फिर से हो जाये। स्वामी जी । महाराज ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने हंसते हुए कहा कि सब लोग सहयोग करें तो भण्डारा हो जायेगा। सबने सहयोग किया।

स्वामी जी से कहा

उस समय श्री प्यारे लाल जी पाठक स्वामी जी के पास रहते थे। वो भी इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। कौन प्रेमी कितना और किस तरह का सहयोग करेगा इसकी रूपरेखा बनाई जा रही थी तो एक प्रेमी का भी नाम आया जिसका नाम बताना प्रासंगिक तो है पर ठीक नहीं है। जब उस प्रेमी का नाम आया तो प्यारे लाल जी ने स्वामी जी से कहा कि अरे भाई साहेब उसकी बात छोड़ो पहले और सबकी तय करो बाद में जो कमी होगी भण्डारे की उसे वह तो पूरा कर ही देगा।

बात तो भोलेपन से ही शायद कही गई थी पर स्वामी जी महाराज गम्भीर होकर बोले पाठक जी! भण्डारा क्या कोई इन्सान पूरी कर सकता है? यह तो सिद्ध पुरूषों की दावत है। अब कभी ऐसी बात मत करना और न कभी सोचना कि भण्डारे की कमी कोई इन्सान पूरी करता है। वह तो परमात्मा की बरक्कत है जितना सबका सहयोग होगा उतना ही उसका भी सहयोग होगा और भण्डारा होगा। (Chamatkar Ko Namaskar) प्यारे लाल जी अवाक रह गये। मेरे दिमाग में स्वामी जी महाराज की कितनी सारी वाणियां एक साथ गूंजने लगी।

सारी वाणियां एक साथ गूंजने लगी

(1) कि मेरे स्वामी जी महाराज ने कहा कि भण्डारे में जो भी आ जाये वह भूखा न लौटे।

(2) कि तुम्हें क्या मालूम है भण्डारे में कभी-कमी नहीं हो सकती। महात्माओं ने तो यहां तक दिखाया कि जब प्रेमियों ने उनसे कहा कि घी खत्म है तो वे बोले कि जाओ गंगा से कह दो हि एक टिन घी दे दे। जब घी आयेगा तब मैं भिजवा दूंगा। प्रेमी गंगा जल टिन में भर करके लाये और कड़ाही में डालते ही घी बन गया। जब घी आया तो महात्मा जी ने गंगा में एक टिन घी डलवा दिया और कहलवा दिया कि मैं घी वापस लौटा रहा हूं। इसे Chamatkar Ko Namaskar कहते हैं.

(3) कि तुम कभी अपना हाथ मत दबाओ। जो जितना खाता है खाने दो, ले जाना चाहता है तो दे दो। तुम नहीं खाओगे तो मुझे कोई चिन्ता नहीं क्योंकि तुम लोग तो रोज खाते हो पर आने वालों को कोई कमी हो यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता यह हमारे अतिथि हैं।

इस तरह की कितनी स्वामी जी की वाणियां मेरे मस्तक में कौंधने लगी। इसी संदर्भ में एक और घटना बता दूं तो अप्रासंगिक न होगा। मेरे बाबा के गुरू बनारस में रामानन्द जी की परम्परा के थे। वो सन्त थे यह तो मैं नहीं कह सकती पर सिद्ध अवश्य थे। मेरे बाबा मेरे पिता जी को साथ लेकर अपने गुरू महाराज के दर्शन करने गये। उस समय पिता जी छोटे थे। पिता जी ने ही यह घटना हमको बताई थी।

साधुओं की एक टोली

जब बाबा और पिता जी आश्रम पर पहुंचे तो वहां भण्डारा बन्द हो चुका था। सेवादार आराम करने जा रहे थे। बाबा गुरू जी के पास बैठ गये और उनसे बातें करने लगे। इतने में साधुओं की एक टोली वहां पहुंची। गुरू जी ने सबकी अगवानी की।

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साधू लोग बोले कि महाराज हम लोग तीर्थ पर आये है अभी तक कुछ खाया नहीं। गुरू जी ने सेवादारों को आदेश दिया कि इन लोगों को प्रसाद दो। सेवादार सकते में आ गये कि क्या करें? भण्डारे में दो चार रोटियां और सब्जी के अलावा कुछ नहीं था। फिर से बनाने में समय लगता। इधर साधू लोग जल्दी मचाये थे। अब क्या करें?

चमत्कार को नमस्कार (Chamatkar Ko Namaskar)

गुरू जी समझ गये। मेरे बाबा को लेकर भण्डार गृह में पहुंचे। उन्होंने रोटी की डलिया हाथ में उठा ली और बाबा के हाथ में देते हुए बोले कि चलो तुम सबको रोटी परोसो। दूसरे सेवादार से बोले कि सब्जी उठाओ और सबको सब्जी दो। मेरे बाबा बड़े असमंजस में पड़े थे कि किस तरह से रोटी परोसेंगे।

पर गुरू आज्ञा सिर माथे। रोटी परोसने लगे और रोटी देते गये किन्तु वो खत्म होने को ही नहीं आई और न तो सब्जी कम पड़ी। साधू लोगों ने छककर प्रसाद लिया। पिता जी तो बच्चे थे पर Chamatkar Ko Namaskar बाबा के बुद्धिवाद को दैविक सिद्धि ने झकझोर दिया। बाबा गुरू जी के आगे नतमस्तक खड़े थे।

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