Dhyan Rakho बाबा जी ने कहा आप अपना ध्यान रखना

यह संसार बहुत ही विचित्र है। यहाँ हर प्राणी को अपना ख्याल रखना (Apna Dhyan Rakhna) पड़ता है ठीक महात्मा भी ऐसे ही बताते हैं कि इस विचित्र रचना से बचने के लिए आपको Apna Dhyan Rakhna जरूरी है क्योंकि तरह-तरह के मन में विकार पैदा होती रहती है। जिससे मन स्थिर भजन में नहीं लगता है। इसलिए महात्मा सत्संग के माध्यम से बहुत ही तरह-तरह के उदाहरण पेश करते हैं और एक साधक को कैसे अपने नियम संयम का पालन जरूरी होता है। इसलिए महात्मा कहते हैं कि हमेशा अपना Dhyan Rakho और बुरे कर्मों से दूर रहो। चलिए जानते हैं जय गुरुदेव।

Dhyan Rakho
Dhyan Rakho

Dhyan Rakho बुरे कर्म करना छोड़ो

ऐसा देखने सुनने को मिल रहा है कि अब लोगों को बहुत प्रकार की तकलीफ और पीड़ा होने लगी। शरीर की पीड़ा से तो करीब-करीब सभी लोग परेशान हैं। कोई न कोई रोग सबको लगा है। आप पहले से होशियार (Pahle Se Dhyan) होते संयम से रहते और मालिक से प्यार करते तो यह पीड़ा नहीं होती। अब तो तमाम किस्म की सुख सुविधाओं में लग गये।

इस बात का Dhyan Rakho जो राज करता है वह कभी आराम से नहीं बैठता। वह हमेशा लड़ता रहता है। कितनी बड़ी लड़ाइयाँ हुईं। राजा किसी की स्त्री को उठवा ले गये और जान बूझकर लड़ाई मोल ले ली। गन्दगी तो सबके लिए बराबर होती है। शान्त तो साधू रहता है।

महापुरूष (Mahapurush) जब ऊपर से आते हैं तो चारों युगों में क्या-क्या हुआ सब देखते हैं क्योंकि यह सच्चा बोध (Sachhi Jankari) है वह देखते है कि बड़े-बड़े चक्रवर्ती राजा कर्म भोग से नहीं बच सके। जिसने यहाँ जैसा किया उसका फल उसको भोगना पड़ेगा। Dhyan Rakho बचेगा कोई नहीं। तुम बुरे कर्म करना छोड़ो। जो कर्म तुम्हें बाँध ले उसे क्यों करते हो? फिर अच्छे कर्म खत्म भी करोगे तब मालिक मिलेगा। जिसने तप (Bhajan) किया उसको राज्य मिला।

दो बातों का ध्यान रखना (Jaruru Bate Dhyan Rakhna)

अगर वह तप करता और राज्य छोड़ देता तो मालिक मिल जाता। कहा भी है कि:-

तप से चूके राज, राज से चूके नर्क

दो बातों का Dhyan Rakhna साधकों की मनोवृत्ति दो प्रकार से खराब होती है। फिर वह साधक भजन (Sadhak Bhajan) में रूखा फीका हो जाता है और गुरु के प्रति भी उसका है भाव बिगड़ जाता है। पहली तो स्त्री है। यदि किसी स्त्री से तुमने भूलकर भी प्रेम कर लिया तो वह स्त्री गुरु (Guru) की तरफ से तुमको विमुख जरूर कर देगी।

गुरु के प्रति अभाव हो जायेगा और ध्यान भजन (Dhyan Bajan) अन्तरी अभ्यास नहीं कर पाओगे। साधक को दूसरों की देवियाँ से बचना जरूरी (Bachna Jaruri) है। उनके पास बैठना तो दूर उनकी शक्ल भी नहीं देखनी चाहिए। जब तक कि साधक की साधना पूरी नहीं होती उसके लिए खास परहेज बताया गया है। इसे ध्यान में रखना (Apna Dhyan Rakhna) चाहिये।

दूसरा है मान बड़ाई। मान बड़ाई की चाह होगी तो साधक (Sadhak) अपने रास्ते से कभी भी गिर सकता है। कहा है:-कंचन छोड़ना आसान है, स्त्री को भी छोड़ा जा सकता है। लेकिन मान बड़ाई (Man Baday) को त्यागना महान कठिन काम है। गुरु की दया (Guru Ki Daya) से ही साधक इसका परित्याग कर सकता है।

Dhyan Rakho ऐसे बच्चों का अवतार (Avataar) होगा?

मैं आपको यह बता दूँ कि इन माताओं से ऐसे बच्चों का अवतार (Avataar) होगा जो आप को सीधा कर देंगे, दिल्ली (Delhi) वालों को सीधा कर देंगे, लखनऊ और जयपुर (Lucknow and Jaipur) वालों को भी सीधा कर देंगे। उसका परिचय थोड़े ही दिनों में होने वाला है। उसका संकेत आपको हर प्रान्त में मिलेगा। हमारी आवाज और हमारी हवा हमारे साथ में होगी। हमारी आवाज के साथ ही हमारी पत्रिका (magazine) बनेगी।

जहाँ हमारी आवाज (Hamari Aavaj) जायेगी वहाँ तक हमारी पत्रिका जायेगी। ये आप में प्रवेश हो जायेगी। हम घूमकर ये हवा चारों तरफ फैला देंगे कि आप लोग होशियार हो जायें, सम्हल जायें, नहीं तो पीछे पश्चाताप करना होगा। कौशिल्या के पीछे पश्चाताप हुआ था। Dhyan Rakho उन बच्चों (Bachho) को ठीक से रखना। वह बच्चे परिवार को लेकर इधर आयेंगे। उन बच्चों में कुदरती दैवी शक्ति अभी मौजूद है और वक्त आने पर प्रकट हो जायेगी।

एक पूरा समाज (Pura Samaj) , पूरी फील्ड एक पूरी नाटकशाला उतरी है जो यहाँ काम करेंगे। ये संकेत हम पहले से दे रहे हैं। समय पर वे उठ खड़े होंगे। समय की प्रतीक्षा (Samay Ki Prtkcha) उनको भी है, समय की प्रतीक्षा मुझको भी है। इसलिए होश में आ जाइएगा। इधर आकर पहले से ही अपने को सम्हाल लो ताकि उन शक्तियों से टकराव न हो जाये।

तुम अपने को सुधारो (Apna Sudhar Kare)

मालिक की याद और प्रार्थना (Prathna) करते रहना चाहिए। इसी से मन बुद्धि निर्मल होंगे। विवेक और विचार आएगा। जब हम छोटी-छोटी प्रार्थना (Choti-Choti Prathna) भी मालिक से नहीं करेंगे तो हमारा मन इन्द्रियों में फैल जायेगा। जिन शब्दों में और जिस तरह से प्रार्थना की जायेगी तब उसका जल्वा देखने को मिलेगा। तब ये मालूम होगा कि वह क्या है और कैसे हमारी प्रार्थना (Hamari Prathna) कबूल करता है।

आप घर में रोज (Roj) अपने कपड़े धोते हो। क्यों? क्योंकि आप चाहते हो कि पड़े पर लगा दाग, मैल छूट जाये कपड़ा साफ (Kapda Saf) हो जाय। अगर वह घर में नहीं छूटता तो उसे धोबी को देते हो और कहते हो कि जैसे भी हो कपड़े के दाग छुड़ा देना। वह कपड़ा ले जाता है।

फिर क्या करता है कैसे धुलाई करता है इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं। तुम्हें तो बस साफ कपड़ा (Saf Kapda) चाहिए। वह तुम्हारे कपड़े ले जाता है भट्ठी पर चढ़ाता है साबुन मलता है मुंगरी से पीटता है और फिर साफ करके तुमकों देता है।

महात्मा की खोज करो (Mahatma Ki khoj Karo)

इसी तरह से मन बुद्धि चित्त और इन्द्रियाँ गन्दगी में सन गई है। मैल चिपट गया है जिसे तुम नहीं साफ कर सकते क्योंकि वहाँ न कोई पानी जा सकता है न तुम्हारा कोई साबुन जा सकता है। उनको साफ करने का तरीका (Saf Karne Ka Tarika) , साफ करने का साबुन, महात्माओं के पास है लेकिन महात्मा पूरा (Pura Mahatma) होना चाहिए। उन्हीं के पास साफ करने का साबुन है, भट्ठी है वह मिल जायेंगे तो तुम्हें अन्तर में जमी मैल साफ कर देंगे। इसीलिए कहा है कि पूरे महात्मा (Pure Mahatma) की खोज करो।

कभी-कभी बाहर की क्रियाओं से थोड़ी सफाई (Safay) होती है लेकिन उसको बताने वाला कोई होना चाहिये। वह तुम्हें बता दे तुम्हारी समझ में आ जाय तो करने लगोगे। लेकिन तुम अपनी मनमानी (Manmani) क्रियाओं चाहो कि हमारी सफाई हो जायेगी तो नहीं हो सकती चाहे तुम जितना गंगा नहाओ तीरथ में जाओ मन्दिर मस्जिद में जाओ तथा कथा पुराण सुनो।

जैसा आप धोबी को कपड़ा दे देते हो फिर उससे ये नहीं पूछने जाते हो कि तुम कैसे धो रहे (Kaise Do Rahe) हो क्या कर रहे हो और इसी तरह से आपको अपना आपा महापुरूषों को सौंप देना चाहिए और प्रार्थना करो (Prathan Kareo) कि आप जैसे भी चाहो हमें साफ कर दो। अब वे जैसे भी साफ करें उनकी मौज मर्जी समझो और पड़े रहो। लेकिन अगर आप ये कहने लगो कि आप ऐसे मत करिए, वैसे मत करिए, ऐसा क्यों हो गया, हमें नहीं चाहिए तो सफाई क्या होगी आपकी?

हमेशा प्रार्थना करो (Hamesha Prathna Kareo)

तो आप अपना आपा सौंप दो, दीन बन जाओ और हमेशा प्रार्थना करो (Prathna Kareo) कि आप हमारी गन्दगी साफ कर दो। जो कुछ भी वह करें सब उनकी मौज मर्जी समझो। दीनता में बहुत सुख है, अहंकार में दुख ही दुख है। इसीलिए कहा है कि-ये मैं पना छोड़ दो। जब तक आप नहीं पकड़ोगे और पकड़कर चढ़ोगे नहीं तब तक मालिक का दीदार नहीं होगा।

इसीलिए बार-बार विनती करो (Binti karo) , रोओ उसके लिए तब काम बनेगा। भजन (Bajan) ऐसे ही नहीं बन जाता है, मेहनत करनी पड़ती है दया की प्रार्थना (Daya kai parthna) करनी पड़ती है, मन को रोकना पड़ता है तुम कहो कि हम भजन कर लेंगे तो तुम बहुत बड़े है शेर हो जो अपने बल बूते कर लोगे? अगर अपने बल बूते कर सकते थे तो अब तक क्यों नहीं किया?

Apni दम-दम Par विनती करो। विनती भी तरकीब और तरतीब से करनी पड़ती है तब मालिक सुनता है। इसलिए सेवा करो। जो तुम्हारी छोटी मोटी गृहस्थी की जिम्मेदारी है उसे पूरी करो और भजन करो (Bajan Karo) तुम्हारी गृहस्थी की गाड़ी चलती रहेगी काम होता रहेगा। तुम चाहो कि एकाएक तुम पर दया कर दी जाय तो दया तो की जा सकती है पर तुम बर्दाश्त नहीं कर सकोगे पागल (Pagal) हो जाओगे और हजारों को बहका दोगे।

रामचरित मानस में लिखा (Ramayan Me Likha)

Dhyan Rakho महात्मा ऐसा काम नहीं करते। हमें ऐसा काम नहीं करना है। धीरे-धीरे दया हो जायेगी। रामचरित मानस (Ramcharit Mansh) में लिखा है कि ‘गुरु’ बिन भव निधि तरे न कोई” पर गुरु कैसा हो? जो खुद भवसागर (Bhaosagaer) से पार जा चुका हो, वह खुद तुमको पार कर सकेगा। वही पार नहीं गया वह तुम्हें क्या पार करेगा। यह कलिग्राम है कर्मों का फैसला होता है।

भजन करना आसान नहीं (Bajan Krana)

जब यहाँ काम होता है तब तुम नहीं आते हो। जब तुम्हारा काम फंसता है तब चले आते हो। जब तुम्हें ये सन्देश मिले कि यहाँ जरूरत है तब भी तुमको आना चाहिए (Aana Chahiye) पर तुम हो कि चूक जाते हो। भजन करना (Bajan Krana) कोई आसान काम नहीं है। जैसे बच्चों के साथ सिखाने पढ़ाने में मेहनत करनी पड़ती है वैसे ही तुमसे भजन कराने (Bajan Krane) में मेहनत करनी पड़ती है। अगर तुमसे कह दिया जाय कि चार घन्टे भजन पर बैठो तो भाग खड़े होगे, घर के काम याद आ जायेंगे। भजन नहीं कराया जाता है तो यहाँ पड़े रहते हो।

हमने गुरु महाराज (Guru Maharaj) के पास देखा कि लोग आते थे। जब गुरु महाराज कहते थे कि भजन पर बैठ (Bajan Par Baith) जाओ तो लोग कह देते थे कि हमसे भजन नहीं होगा। तुम यहाँ जो भी छोटी बड़ी सेवा करते हो भण्डारे की सेवा करते हो तुम्हें कभी रोष नहीं करना चाहिए और रोष करना मत।

यहाँ देवता नहीं बैठे हैं और न सब देवता (Devta) आते है। यहाँ पर हर तरह के अच्छे बुरे लोग रोज आते हैं और रहते हैं। कितने लोग तुम्हारे संग तुम्हारे पीछे लगे रहते है। यहाँ सब लोग आ सकते हैं। किसी को रोक नहीं यहाँ पर शिक्षा सुधारने की दी जाती है। कोई एक दिन में सुधरेगा, कोई दो दिन में, किसी को वक्त लगेगा। कुछ ऐसे भी होंगे जो सुधरना नहीं चाहेंगे, जब तक रहेंगे, रहेंगे नहीं खुद चले को सुधारो अपनी बुराइयों को निकालो तुम्हें दूसरों की चिन्ता क्या पड़ी हैं।

हमेशा अपना ध्यान रखो (Apna Dhyan Rakhna)

इसलिए महात्मा कहते हैं कि जो जैसा करेगा वैसा भरेगा। हमेशा अपना ध्यान रखना (Apna Dhyan Rakhna) और सादगी से गुरु के बताए हुए नियमों पर चलकर के कोई भी साधक सफल हो सकता है।

कबीर तेरी झोपड़ी गल कट्टों के पास।
करेगा सो भरेगा, तू क्यों होत उदास॥
तन मन दिया तो भला किया, सिर का जासी भार।
अगर कहा कि मैं दिया, तो बहुत सहेगा मार॥

निष्कर्ष

Mahanubhao ऊपर दिए गए Jai Guru Dev सत्संग आर्टिकल के माध्यम से आपने यह जाना कि ध्यान रखो (Dhyan Rakho) महात्मा क्या बतलाते हैं? क्या नहीं बतलाते हैं? यदि हम सत्संग में जाते हैं और सुनते हैं, हमने अपने जीवन में नहीं उतारा तो भला सत्संग जाने का फायदा ही क्या हुआ, इसलिए महात्मा कहते हैं कि हमेशा Apna Dhyan Rakhna कि महात्मा क्या कहते हैं? और क्या बोलते हैं? आशा है आप को ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर पसंद आया होगा। जय गुरुदेव मालिक की दया सबको प्राप्त हो।

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