महानुभाव जैसे कि आप सभी जानते हैं कि जो पूरा सन्त होता है उसकी व्याख्या करना व्यर्थ है। क्योंकि पूर्ण संत इतना महान होता है कि वह इस संसारी जीव को अपना बच्चा समझता है। खुद परेशान होता है लेकिन हम सबको परेशानियों और मुसीबतों से निकालते हैं।
ठीक संतों का काम क्या होता है? कैसे जीव के साथ बर्ताव करते हैं? सत्संग के माध्यम से महापुरुषों ने सब कुछ बताया है। क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं हम अनजान हैं चलिए जानते हैं संत कौन है? संत शब्द का अर्थ और काम के बारे में, सत्संग के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश संत महात्माओं के बारे में,

पूरा संत कौन है?
संत पूरा वही है जिसने भक्ति और ध्यान के बल से शब्द पर चढ़ाई कर ली हो और मालिक के दरबार में होने की हक की दया प्राप्त कर ली हो उनकी आत्मा पूरण धनी की आत्मा से मिल कर शब्द रूप हो जाती है और सत्तलोक में संत सुरत नित्य आती जाती रहती है।
संत सदा सत्त पुरुष के दरबार में उपस्थित होते हैं और जीवों की सम्पूर्ण बिपदा को सुनाते हैं क्योंकि सत्त पुरूष ही सच्चा सुरतों का पिता है। बच्चों की तकलीफ को बिना पिता के कौन सुनेगा। सन्त उसी सत्तपुरूष के अवतार होते हैं।
संतों का काम
संतों का काम जीवों को प्रेम देना है और जो कर्म किए हैं उसको क्षमा करना। रास्ता देना ध्यान सुमिरन और भजन कि युक्ति देना और जीव की अनेक वासनाओं को तोडना मालिक से अर्ज करते रहना ताकि जीव को सुगम रास्ता मिले और जल्द अपने घर में पहुँचे यही सन्त की महानता है।
सन्तों का स्वभाव दयालु होता है। जैसा बच्चों का स्वभाव होता है वैसा ही सन्तों का भी स्वभाव होता है। कोई कुछ कह ले उसको चित्त में नहीं रखते हैं और स्वभावतः भूल जाते हैं। इस दुनिया में संत ही हितैषी जीवों के होते हैं परन्तु संसारी जीव उन्हें जानते नहीं हैं। जिन महात्मा संतों की महिमा है वह तो जीवों को मिलते ही नहीं हैं।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने यह जाना कि पूरा संत कौन है? संत शब्द का अर्थ और काम के बारे में जाना। संत महात्माओं के बारे में यह छोटे से पोस्ट को पढ़ा। आशा है आपको सत्संग आर्टिकल जरूर अच्छा लगा होगा, जय गुरुदेव
और अधिक पढ़ें: नाम की (Name Ki) महिमा
Comments are closed.